________________
عمومی امام
مهم مصاص نفسه فه ی تی و
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे = शीलवर्जिताः दुराचाराः (णिव्वया) निव्रताः = महाव्रताणुव्रतवर्जिताः अनुव्रतमूलगुणरहिता इत्यर्थः, (णिग्गुणा) निर्गुणाः = उत्तरगुणवर्जिताः (णिम्मेरा) निर्मर्यादाः = . कुलादिमर्यादापरिवर्जिताः, (णिप्पच्चक्खाणपोसहोववासा) तत्र निष्प्रत्याख्यानपोषधोपवासाः प्रत्याख्यानानि पौरुष्यादिनियमाः, पोषधोपवासाः अष्टम्यादि पर्वोपवासाः, तेभ्यो निष्क्रान्ता येते तथा पोरुष्यादि नियमान् अष्टम्यादिपर्वोपवासांश्च आनाचरन्तः, (ओसणं) बाहुल्येन (मंसाहारा) मांसाहारामांसभक्षिणः पश्चादीनां मांस भक्षणशीलाः (मच्छाहारा) मत्स्याहागः = मत्स्यभोजिनः (खुड्डाहारा) रुद्राहाराः तुच्छाहाराहरणकारिणः तथा (कुणिमाहरा) कुणपाहारा: बसादि दुर्गन्धाहारकारिणः सन्तः (कालमासे कालं किच्चा) कालमासे कालं कृत्वा (कहिं गच्छिहिति) का गमिष्यन्ति कस्मिन् स्थाने गति करिष्यन्ति ? (कहिं उववजिहिंति) क्वउपपत्स्यन्ते = कुत्र जनिष्यन्ते ? इति । भगवानाह (गोयमा!) हे गौतम ! (ओसणं) बाहुल्येन (णरगतिरिक्खजोणिएसु) नरकतिर्यग्गतिषु (गच्छिहिति) गमिष्यन्ति = गतिभाजो भविष्यन्ति (उपवन्जिहिति) उपपत्स्यन्ते = उत्पत्तिभाजो भविष्यन्ति । पुन गौतमस्वामी पृच्छति-(तीसे ण भंते ! समाए ) तस्यां
अब गोतम स्वामी पुनः प्रभु से ऐसा पूछते हैं - "तेणं भंते ! मणुया'? हे भदन्त ! ये छठे आरे में उत्पन्न हुए मनुष्य जो कि (णिस्सोला) शील से वर्जित दुराचार वाले होंगे. (णिन्वया) महाव्रत और अणुव्रतों से रहित रहेंगे-अनुव्रत और मूलगुणों से रहित रहेंगे(णिग्गुणा) उत्तर गुणों से रहित रहेंगे (णिम्मेरा) कुलादि मर्यादा से परिवर्जित रहेंगे (णिप्पच्चक्वाणपोसहोववासा) पौरुषि आदि नियमों के और अष्टमी आदि पर्व सम्बन्धी उपवासों के आचरण से रहित रहेंगे, (ओसण्णं मंसाहारा मच्छाहारा खुड्डा हारी, कुणिमा हारा) प्रायः मांस ही जिनका आहार होगा मत्स्यों को जो खावेंगे, तुच्छ आहार करेंगे और वसादि दुर्गन्ध आहार करनेवालेहोंगे (कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छहिंति, कहिं उवव. ज्जिहिति) कालमास में मरकर कहां पर जावेंगे ? कहां पर उत्पन्न होवेंगे? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ! ओसणं णरगतिरिक्खजोणिएसु गच्छिहिंति उववजिहिंति) हे गौतम ! प्रायः कर के ये नरक गति और तिर्यञ्च गति में जावेंगे और वहीं पर उत्पन्न होंगे पुनः से छ!! मारामा अत्यन्न थये। मनुष्य। २ (णिस्सीला) शा वाताशयाशयरी (णिव्वया) माथी जान थरी-मनुबनी अने भूणगुणेथी २डित शे. (णिगुण्णा) उत्तम शुशीथी २हित शे, (णिम्मेरा) gall मर्यादा थी परिव त श (णिप्पच्चक्खाणपोसકોણaar) પરિષિ વગેરે નિયમ અને અષ્ટમી વગેરે પર્વે સંબંધી ઉપવાસના આચરણ थीडित थशे, (ओसणं मंसाहारा मच्छाहारा खुडाहारा कुणिमाहारा) प्राय: भांडा
, मत्स्यभक्षी. थशे. तु माहा२ ४२शे मन वसाह ५ माडा२ भक्षी थशे. (काल मासे काल किच्चा कहिंगच्छिाहति कहिंउववजितहिति) आभासमा भर प्राशन ज्यांश १ : 6-4 थशे सेना भामांप्रमुछे-गोयमा! ओसण्णं णरगतिरिक्खजोणिपसु गच्छिहिंति उअवजिहिति ३ गौतम!प्रायः शने से थे। न२४ गति सतिय"य गतिमा अने त्यi or Gu-न थशे. ३२री गौतम स्वामी प्रसुन प्रश्न ४२ छ.- (तोसेणं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org