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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिस्त्र ष्टि संख्यकान् 'महिलागुणे' महिलागुणान् स्त्रीकलाः 'कम्माणं' कर्मणां-जीविकासाधनभूतानां च मध्ये 'सिप्पसयं' शिल्पशतं-विज्ञानशतम् शतसंख्यकानि कुम्भकारादि शिल्पानीत्यर्थः, एतानि 'तिण्णिवि' त्रीण्यपि ‘पयाहियाए' प्रजाहिताय-लोकोपकाराय 'उवदिसइ' उपदिशति । 'त्रीण्यपि' इत्यत्र अपि शब्दः कला-महिलागुण-शिल्पशतानाम् एकपुरुषोपदिश्यमानतेति सूचनार्थम् । 'उपदिशति' इति वर्तमानकालत्वेन निर्देशः सर्वेषा माधतीर्थकराणामयमेव उपदेश प्रकार इति सूचयितुम् । यद्यपि कृषिवाणिज्यादयो बहवो जीविकासाधनप्रकाराः सन्ति, तथापि यत् शिल्पशतमेवात्र निर्दिष्टं तत् कृषिवाणिज्यादीनां पश्चादुत्पत्तिरिति सूचनायेति । ततश्च भगवता शिल्पशतमेवोपदिष्टं कृषिवाणिज्यादीनि तु पश्चात् समुद्भूतानीति विज्ञेयम् । अत एव आचार्योपदेशजं शिल्पम् अनाचार्योपदेशजं कर्मेति प्रसिद्धम् । की बोली को पहिचाननेरूप अन्तिम कला तक की इन सब ७२ कलाओं को एवं ६४ स्त्रियों की कलाओं को, तथा जीविका के साधन भूत कर्मों के बीच में विज्ञानशत को-शत संख्यक कुम्भकारादि शिल्पों को इस तरह लेखादिक रूप पुरुषों की ७२ कलाओं को, ६४ स्त्रियों की कलाओं को और विज्ञानशतरूप शिल्पों को प्रजाजनों के हितके लिये उपदिष्ट किया, "त्रीण्यपि" में आया हुआ यह अपि शब्द यह सूचित करता है कि ये ७२ कलाएँ ६४ कलाएँ और शिल्पशत इन सब में एक पुरुष द्वारा उपदिश्यमानता है अर्थात् इनका सर्व प्रथम उपदेश इन्हीं ऋषभदेव ने दिया है । "उपदिशति" ऐसा जो वर्तमान कालिक का प्रयोग किया गया है उससे सूत्रकार ने यह सूचित किया है कि समस्त आद्यतीर्थंकरों के उपदेश का प्रकार ऐसा ही होता है । यद्यपि कृषि, वाणिज्य आदि अनेक प्रकार के जीविका के साधन हैं तथापि यहां जो शिल्पशतमात्र का ही निर्देश करने में आया है वह इस बात को प्रगट करता है कि इनकी उत्पत्ति पश्चात् ही हुई है । इस तरह भगवान् ऋषभदेव ने तो शिल्पमात्र का ही उपदेश दिया है । कृषि वाणिज्यादि का नहीं इनकी तो पीछे से ही उत्पत्ति हुई है। इसलियेशिल्प आचार्योपदेशज है और कर्म अनाचार्योपदेशज है । अथवाबपोश या. "त्रीण्यपिः' भी मावस 'अपि' श४ मा सूथित ४२ छ । ७२ કલાઓ, ૬૪ કલાઓ અને શિ૯૫–શત એ સર્વેમાં એક પુરુષ વડે ઉપદિશ્ય માનતા છે. सेट से सब सामान। सर्व प्रथम उपहेश ऋषम या छ. "उपदिशति" એ જ વર્તમાન કાલિક પ્રગ કરવામાં આવેલ છે તેનાથી સૂત્રકાર આ પ્રમાણે સૂચિત કરવા માંગે છે. સમસ્ત આદ્ય તીર્થકરો ના ઉપદેશને પ્રકાર એ જ હોય છે, જે કે કષિ. વાણિજ્ય વગેરે અનેક પ્રકારનાં જીવિકાનાં સાધન છે, તે પણ અહીં માત્ર શિ૯૫શતને જ નિર્દેશ કરવામાં આવેલ છે, તે આ વાત પ્રકટ કરે છે કે એમનું પ્રચલન પછી જ થયું છે. આ રીતે ભગવાન ઋષભદેવે તે શિ૯૫ શત માત્રને જ ઉપદેશ કર્યો છે. કૃષિ વાણિજયાદિ ને ઉપદેશ કર્યો નથી. એમને આવિષ્કાર તે પછી જ થયો છે. એથી શિ૯૫ આચાર્યોપદેશ જ છે અને કર્મ અનાચાર્યોપદેશ જ છે. અથવા
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