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प्रकाशिका टीका द्विवक्षस्कारसू. ४३ ऋषभस्वामिन केवलज्ञानोत्पत्त्यनन्तरकार्यनिरूपणम्३९५ अधोमुखाः ऊर्ध्वतिर्यग्दृष्टिविक्षेपरहिता इत्यर्थः, तथा 'झाणकोट्ठोवगया' ध्यानकोष्टोपगताः ध्यानरूपो यः कोष्ठः कुसुलस्तम् उपागताः तत्र प्रविष्टाः कोष्ठके यथा धान्यं निक्षिप्तं न विकीर्ण भवति, एवमेव तेऽनगारा ध्यानकोष्ठकोपगताः सन्तो विषयाप्रचारितदृष्टयो भवन्तीति भावः, एवं विधास्तेऽनगाराः 'संजमेणं' संयमेन सप्तदशविधेन तवसा' तपसा-द्वादशविधेन च 'अप्पाणं भावेमाणा' आत्मानं भावयन्तो वासयन्तो 'विहरंति' विहरन्ति=तिष्ठन्तीति । संयमतपसोश्चात्र ग्रहणं तयोः प्रधानतया मोक्षाङ्गत्वसूचनार्थम् , तत्र संयमस्य नवीनकर्मानुपादानहेतुत्वेन तपसश्च पुराणकर्मनिर्जराहेतुत्वेन मोक्षप्रधानाङ्गत्वम् । नवोनकर्मासंग्रहणात् पुरातनकर्मक्षपणाच्च सकलकर्मक्षयलक्षणो मोक्षो भवत्येवेति । तथा-'अरहओ णं उसभस्स आसन को छोड़ने से और औपग्राहिक निषद्या के अभाव से जो उत्कुटुक आसन वाले साधु जन हैं वे उर्ध्वजानु साधुजन हैं, "अहो सिरा" जो नीचा मुंह करके तपस्या में लीन रहते हैं वे अधः शिराः साधुजन हैं इनकी दृष्टि ऊपर की ओर नहीं जाती है. जो साधुजन कोष्ठक में रखा हुआ धान्य जिस प्रकार विकीर्ण नहीं होता हैं इसी प्रकार "झाण कोदोवगया" ध्यानरूपी कोष्ठक में विराजमान रहते है, इनकी दृष्टि विषयों की ओर प्रचारित नहीं होतो है वे अनगार ध्यानकोष्ठकोपगत कहे जाते हैं । “संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति" इस प्रकार के ये सब अनगार सतरह प्रकार के संयम से और १२ प्रकार के तप से अपनी आत्मा को भावित करते थे. यहां जो संयम और तप का ग्रहण हुआ है वह प्रधानता से उनमें मोक्षाङ्गत्व की सूचना के निमित्त से हुआ है. क्योंकि संयम के द्वारा नवीन कर्मों का आगमन रोका जाता है और तप के द्वारा संचित हुए कर्मों की निर्जरा की जाती हैं. इस कारण इनमें मोक्ष कारणता प्रधान हैं. यह तो निश्चित है कि नवीन कमों का आगमन तो होता नहीं और पुराने संचित कर्मों की निर्जरा होती रहे तो इस तरह से सकल कर्मक्षयरूप 'उर्वजानवः' पर्यन्तनु तमाम मनसावन गोयपातिसूत्रथी समछ . शुद्ध पृथिवी રૂપ આસનને છોડવાથી અને ઔપગ્રાફિક નિષદ્યાના અભાવથી જે ઉસ્કુટુક આસનવાળા साधुनना छ त
अ नु साधुजना छे. २ 'अहोसिरा' नीयुमा ४शन तपस्यामा લીન રહે છે તે અધઃ શિરાર સાધુજને છે. એમની દૃષ્ટિ ઉપરની તરફ જતી નથી. જે साधुसन। अष्टभ भूईस धान्य भवितु' नथी त रे 'झाणकोटठोवगया' ધ્યાન રૂપી કેપ્ટકમાં વિરાજમાન રહે છે, તેમની દૃષ્ટિ વિષયેની તરફ પ્રચારિત થતી નથીतवा मनमारने ध्यान रगत वाम मा छे. 'संजमेणं तवला अपपाण भावेमाणा विहरंति' मा प्रमाणे से सव मनगा। १७ प्रा२ना संयमथी भने १२ प्रा२न। तपथी પિતાના આત્માને ભાવિત કરતા હતા. અહીં જે સંયમ અને તપનું ગ્રહણ થયેલ છે તે પ્રધાનતાથી તેમનામાં મેક્ષાંત્વની સૂચના માટે થયેલ છે, કેમકે સંયમ દ્વારા નવીન કમેનું આગમન રોકવામાં આવે છે અને તપ દ્વારા સંચિત થયેલા કર્મોની નિર્જરા કરવામાં આવે છે. એથી એમનામાં મેક્ષકારણતા પ્રધાન છે. આ વાત તે નિશ્ચિત છે કે નવીન કર્મોનું આગમન તે થાય નહીં અને જૂના સંચિત કર્મોની નિર્જરા થતી રહે તે આ પ્રમાણે
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