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ધર
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे
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भिए) उपशोभितः - अलङ्कृतः, (तं जहा) तद्यथा (कित्तिमेहिं चैव अकित्तिमेहिं चेव) कृत्रिमैश्चेव अकृत्रिमैश्चैव - स्वाभाविकैः कारुनिर्मितेश्च मणिभिरुपशोभित इत्यर्थः, इति भरतर्षभभूमिभागवर्णनम् अथ दुष्पमसुषमा कालोत्पन्न भरत क्षेत्रभवमनुजान् वर्णयितुं संवदति (तीसे) तस्या दुष्पमसुषमायां (ं) खलु (भंते ! ) भदन्त ! हे महानुभाव: ( समाए) समाय काले (भरहे) भरते -भरत क्षेत्रे वर्षे (मणुयाण) मनुजानां मनुष्याणां (केरिसए) कीदृशक :Area: (आयारभाव पडोयारे) आकारभावप्रत्यवतारः - स्वरूप संहननसंस्थानोच्चत्वादिपदार्थसहित प्रादुर्भावः (पण्णत्ते) प्रज्ञप्तः ? अस्य प्रश्नस्योत्तरं भगवानाह - ( गोयमा ! ) गौतम ! (तेसिं) तेषां दुष्षमसुषमासमोत्पन्न भरतवर्षीयाणाम् (मणुयाणं ) मनुजानां (छव्विहे) षड्विधं षट्प्रकारकं (संघयणे) संहननं शरीरं (छवि) षड्विधं (ठाणे) संस्थानम् आकार : ( बहूई) बहूनि - अनेकानि (धणू) धनूंषि (उद्धं) ऊर्ध्वम् (ऊच्चतेण) उच्चत्वेन प्रज्ञप्तम् तच्च ते (जहण्णेणं) जघन्येन - अपकर्षेण (अंतोमुडुतं) अन्तर्मुहूर्त्तम् (उको सेणं) उत्कर्षेण-उत्कृष्टतया (पुव्वकोडो आउअं) पूर्व कोट्ययुष्कम् - पूर्वकोटिमायुः ( पालेंति) चाहिये • वह भूमि अनेक प्रकार के पांचवर्णों के मणियों से उपशोभित थो "कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव" इन मणियों में कृत्रिम मणि भी थे और अकृत्रिम मणि भी थे इस प्रकार से, चतुर्थ काल के समय की भूमिकावर्णन कर अब सूत्रकार इस चतुर्थ काल में उत्पन्न हुए मनुष्यों का वर्णन करने के लिये कहते हैं- "तीसे णं भंते ! समाए भरहे वासे मणुयाणं केरिसए आयारभाव - पडोयारे पण्णत्ते" इसमें गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - हे भदन्त उस चतुर्थ काल के मनुष्यों का स्वरूप कैसा कहा गया हैं ? अर्थात् इनका स्वरूप संहनन, संस्थान एवं उच्चत्वादि पदार्थ सहित प्रादुर्भाव कैसा बतलाया गया है. इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते है - 'गोयमा तेसिं मणुयाणं छव्विहे संघयणे" हे गौतम चतुर्थ काल के मनुष्यों के ६ प्रकार का संहनन कहा गया "है तथा वह " बहूई घणूई उद्धं उच्चत्तेणं" अनेक धनुष का ऊंचाई वाला कहा गया है. इस काल के मनुष्यों की आयु जघन्य से " अन्तोमुहुत्तं " एक अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से “पुन्वकोडी आउयं पालेंति" एक पूर्वकोटि की कही गई है. इतनी बड़ो आयु को भोगकर "अप्पेपांच वर्षो ना भजियोथी उपशोभित हुती. “कित्तिमेहिं चेव अकित्तिहिं चेष" मे मधुએમાં કુત્રિમ મણિએ પણ હતા. અને અકૃત્રિમ મણિએ પણ હતા. આ પ્રમાણે ચતુ કાળના સમયની ભૂમિનું વર્ચુન કરીને હવે સૂત્રકાર આ ચતુર્થ કાળમાં ઉત્પન્ન થયેલ भाशुसोनुं वाबुन श्वा भाटे याप्रमाणे आहे छे - "तीसेण भते । समाप भर वाले - याण के रिसए आया रभाव पडोयारे पण्णत्ते” आमा गौतमस्वामी प्रभुने भा प्रमाणे प्रश्न છે કે હે ભદન્ત તે ચતુર્થી કાળના માણુસાનુ સ્વરૂપ કેવું કહેવામાં આવ્યું છે. આ પ્રશ્ન ना उत्तरमा प्रभु - "गोयमा ! तेसि मणुयाणं छब्बिहे संघयणे" हे गौतम ! तु अपना भासेो ना ६ प्रहारना संडेनन वामां माया छे तेम४ त 'बहु धनू उ उच्चत्तेणं” अने४ धनुषो भेटसी या घरावता हता. आ अपना भाणुसो तु आयुध न्यथी “अंतोमुडुत्त” मे अन्तर्मुहूर्तनी भने उत्कृष्टथी "पुव्वकोडी आउयं पालेति”
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