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प्रकाशिका टीका द्वि वक्षस्कारः सू.५४ षष्ठारकस्वरूपनिरूपणम्
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तेजांसि येषां ते तथा - निष्प्रभा इत्यर्थः, तथा ( अभिक्खणं) अभीक्ष्णं सततं (सीउण्ह - खर - फरुस - वाय-विज्झडिअ मलिण-पंसु-रओ-गुंडियंग मंगा) शीतोष्ण-खर-परुप-वात- मिश्रितमलिन- पांशु-रजोऽवगुण्ठिताङ्गाङ्गाः शीताः शीतस्पर्शाः, उष्णः = उष्णस्पर्शाः खराः, तीक्ष्णाः पुरुषाः, कटोरा ये वाताः, वायवस्तैः मिश्रितानि व्याप्तानि, 'विज्झडिय' इति मिश्रितार्थे देशी शब्द:, अतएव मलिनानि मालिन्यमुपगतानि तथा-पांसुरजोऽवगुण्ठितानि पांसवो = धूलयस्तेषां यानि रजांसि = सूक्ष्मकणास्तैरवगुण्ठितानि अङ्गानि अवयवा यस्मिंस्तादृशमङ्ग शरीरं येषां ते तथा शीतोष्णखर परुषव्याप्तत्वेन मलिना धूलिसूक्ष्मांशसंवलिशरीराश्चेत्यर्थः, तथा (बहुको हमाणमायालो भा) बहुक्रोधमानमायालोभा-बहवः क्रोधमानमायालोमा येषां ते तथा प्रचुर क्रोधमानमायालोभयुक्ताः (बहुमोहा) बहुमोहाः प्रचुरमोहयुक्ताः, (असुभदुःखभागी) अशुभदुःखभागिन:- नास्ति शुभं शुभकम येषां ते अशुभाः शुभकर्मवर्जिताः, अतएव दुःखभागिनः- दुःखभाजः पदद्वयस्य कर्मधारयः, तथा - (ओसvi) वाहुल्येन (धम्मसण्णसम्मत्तपरिभट्ठा) धर्मसंज्ञासम्यक्त्व परिभ्रष्टाः धर्मसंज्ञा धर्मश्रद्धा सम्यक्त्वं जनमताभिरुचिस्ताभ्यां परिभ्रष्टाः च्युताः, बाहुल्यग्रहणेन कदाचिदेते सम्यग्दृष्टयो अपि भवन्तीति सूचितम्, तथा ( उक्को सेणं) उत्कर्षेण ( रयणिप्पमाण मे
हो जावेगी अर्थात् ये किसी भी प्रकार को चेष्टा वाले नहीं होगें चेष्टा से रहित ही होगा ( न तेआ) इनका शरीर फीका कान्ति रहित ही होगा, (अभिक्खणं सीउण्हखरफरु सवायविज्झडिअ मलिणं सुरभोगुंडियंग मंगा ) इनका शरीर निरन्तर शीतस्पर्श वाली उष्णस्पर्श वालो, तीक्ष्ण, कठोर, वायु से व्याप्त रहेगा अत एव वह मलिनता युक्त होगा और धूलि के छोटे छोटे कणों से वह अगुण्ठित रहेगा ( बहु को इमाणमायालोमा ) इनके क्रोध, मान, माया और लोभ ये कषायें प्रचुर मात्रा में रहेगो (बहुमोहा) मोह ममता- इनमें बहुत अधिक होगी ( असुभदुक्खभागी) शुभ कर्मों से ये रहित होगें इसलिये दुःखों के ही ये पात्र होगें, तथा - (ओसण्णं धम्मसण्ण सम्मत्तपरिब्भट्ठा) ये प्रायः धर्मश्रद्धा और सम्यक्त्व से परिभ्रष्ट होंगे यहां जो प्रायः शब्द प्रयुक्त हुआ है उस से यह प्रगट किया गया है कि कदाचित् ये सम्यग्दृष्टि भो होंगे । तथा - ( उक्कोसेणं स्यणिप्पमाणमेत्ता ) यागु लतनी येष्टावाणा थशे नही-येष्टारहित थशे. (नट्ठतेआ) शेभनु शरीर रीड - કાંતિ રહિત હશે. (अभिक्खणं सीउन्हखरफरुसवाय विज्झडिअमलिणपंसुर ओगुंडियंगमंगा) भनु शरीर निरंतर शीतस्यर्शवाणा, उष्णस्पर्श वाजा, तीक्ष्य, उठोर वायुथी व्याप्त રહેશે, એથી તે મલિનતા યુક્ત હશે અને ધૂલિના નાના-નાના કણા થી તે અવગુ‘તિ रडेशे (बहु कोहमाणमायालोभा) भने ोध, मान, माया भने बोल थे उषायो प्रयुर मात्रामा रहेश. (बहु मोहा) भोई भमता - शेभनामां मडु न वधारे प्रमाणुभां थशे, (असुभदुक्खभागी) शुलम्भैथी येथे रहित इथे मेथी भे थे। दुःमलागी थशे तथा (ओसण्णंधम्मसण्णसम्मत्तपरिभट्ठा) येथे। प्रायः धर्म, श्रद्धा अने सभ्यत्वथी परिभ्रष्ट शे. अड्डी ने प्रायः शब्दवायी 'ओसण्ण' शब्द प्रयुक्त थयेस छे. तेनाधी या वात प्रकुट वामां भावी छेउहायित येथे। सम्यग्दृष्टि सम्पन्न पशु थशे. तथा (उक्कोसेणं स्यणिपमाण
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