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जम्बद्विपप्राप्तिसूत्रे दन्त अस्ति खलु तस्यां समायां भरते वर्षे आवाह इति वा ? आवाहः विवाहात् पूर्व क्रियमाणो वाग्दानरूप 'उत्सवविशेषः, वीवाहाइ वा विवाह इति वा ? विवाहः-प्रसिद्धः, 'जण्णाइ वा' यज्ञ इति वा ! यज्ञःवह्नौ घृतादिडवनलक्षणः, 'सद्धाइ वा' श्राद्धमिति वा ? श्राद्धं मृतक क्रिया। ‘थालीपागाइ वा' स्थालीपाक इति वा ? स्थालीपाक:-लोकगम्यो मृतकक्रियाविशेष एव, 'मियपिंड निवेयणाइ वा' मृतपिण्ड निवेदनमिति वा ?, मृतपिंडनिवेदनम् मृतमुद्दिश्य पिण्डप्रदानम् ? भगवानाह-'णो इणटे समद्रे' नो अयमर्थः समर्थः यतो 'समणा उसो , हे आयुष्मन् श्रमण! 'तेण मणुया' ते मनुजाः खलु 'ववगय आवाहवीवाह जण्ण सद्ध थालीपागमियपिंडणिवेयणा' व्यपगताऽऽवाहविवाहयज्ञश्राद्धस्थालीपाकमृतपिंडनि वेदन:-व्यपगतानि आवाहविवाह यज्ञश्राद्ध स्थालीपाकमृतपिंडनिवेदनानि येभ्यस्ते तथा भूताः ‘पण्णत्ता' प्रज्ञप्ताः । न तत्रावाहविधाहादिकं वर्तते इति भावः । पुनौतमस्वामी पृच्छति-'अत्थिणं भते !तीसे समाए भरहे वासे इंदमहाइ वा' हे भदन्त अस्ति खलु तस्यां समायां भरते वर्ष इन्द्रमह इति वा? इन्द्रमहः इन्द्रनिमित्तक उत्सवः, 'खंदमहाइ' वा स्क
"अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे आवाहाइ वा वीवाहाइ" इत्यादि टीकार्थ-गौतम स्वामी ने पुनः प्रभु से ऐसा पूछा है हे भदन्त!उस सुषम सुषमा काल के समय इस भरत क्षेत्र में आवाह विवाह होने के पहिले होनेवाला वाद्गान रूप उत्सव विशेष होता है क्या ? विवाह परिणयन रुप उत्सव विशेष होता है क्या ! यज्ञ अग्नि में घृतादि के हवन करने रूप उत्सव विशेष होता है क्या ? श्राद्ध मरण के बाद पंक्तिभोजन आदि रूप क्रिया होती है क्या? स्थालीपाक लोक गम्य मृतक क्रिया विशेष होता है क्या ? मृतपिण्डनिवेदन मृतक को लक्ष्य करके पिण्डदान करना होता है क्या ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि "णो इणट्रे समझे" हे गौतम यह अर्थ समर्थ नहीं है क्योंकि "ववगयो आवाह विवाह जण्ण सद्ध थाली पाग मिय पिण्ड णिवेयणा णं ते मणुया पण्णत्ता" वे उस काल के मनुष्य आवाह, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध, स्थालीपाक और मृत पिण्ड निवेदन इन सब से रहित होते हैं अर्थात् उस काल में आवाह आदि क्रियाएँ नहीं होती हैं। "अस्थि ण भंते ! तीसे समाए, भरहे वासे इंदमह'इ वा खंदमहाइ वा णागमहाइ वा जक्ख
अस्थि ण भंते तीसे समाप भरहे वासे आवाहाइ बा वीवाहाइ वा-इत्यादि ટીકાર્ય–ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને ફરીથી આમ પ્રશ્ન કર્યો કે હે ભદન્તીતે સુષમ સુષમા કાળના સમય માં આ ભરત ક્ષેત્રમાં આવાહ-વિવાહ પહેલાને વાગુદાન રૂ૫ ઉત્સવ વિશેષ હોય છે ? વિવાહ પરિણયન રૂપ ઉસવ વિશેષ હોય છે? યજ્ઞ–અગ્નિમાં ધૃતાદિકથી હવન કરવા રૂ૫ ઉત્સવ વિશેષ હોય છે? શ્રાદ્ધ-મૃત્યુ પછી પંકિતભેજન આદિ રૂપ ક્રિયા–હોય છે ? સ્થાલી પાક-કગમ્ય મૃતક ક્રિયા વિશેષ હોય છે ? મૃતપિડનિવેદન–મૃતકને અનુલક્ષીને પિડદાન નામક अस्वाभा मावस लिया विशेष डाय छ १ सेनामा प्रभु छ: "णो इणडे समडे" गीतभ ! ॥ अथ समर्थ नथी. उभा 'ववगय आवाह विवाह जससा सद्धथालीपाग मिय पिंड णिवेयणा ण ते मणुया पण्णत्ता' a जना भनुष्य मावास, विवास, यज्ञ, श्रा થાલીપાક અને મૃતપિંડ નિવેદન એ સર્વ ક્રિયાઓથી રહિત હોય છે. એટલે કે તે કાળમાં पापा वगरे सध्या । थती नथी. ? "अस्थि ण भंते तीसे समाए भरहे वासे ईद
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