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मानरुचिररमणीय रोमराजयः:-इह ऋजुकत्वादीनि रोमराजिविशेषणानि, तत्र ऋजुका
- अवक्रा न कुटिला समा तुल्या न क्वापि दन्तुरा संहिता मिलिता न त्वन्तरिता जात्या स्वाभाविक मुख्या वा, तन्वी सूक्ष्मा कृष्णा-कृष्णवर्णा, न तु कपिरोमवत्कपिशा स्निग्धा चिक्कणा सकान्तिः आदेया नेत्रस्पृहणीया ललिता - सुन्दरता सम्पन्ना सुजाता सूत्पन्ना सुविभक्ता समीचीनविभागसम्पन्ना कान्ता कमनीया अत एव शोभमाना रुचिररमणीया अत्यधिकमनोहरा रोमराजि: रोमवलिर्यांसां तास्तथा, केचिद् ऋजुकत्वादीनि रोम विशेणान्याहुः तथा सति व्यधिकरणबहुव्रीहे खलम्बनापत्तिरतो रोमराजिविशेषणान्येव युक्तानीति व्यधिकरणबहुव्रीहे रगतिकगतित्वात्तन्मतं न युक्तम् । 'गंगावत पयाहिणावत्ततरंग भंगुर विकिरणतरुण बोहियआको सायं तप उमगंभीरवियडणाभा' गङ्गावर्त्तप्रदक्षिणावर्ततरङ्गभङ्गुररविकिरणतरुण बोधिताकोशायमानपद्मगम्भीरविकटनाभाः - एतत्पदं मनुजवर्णनप्रसङ्गेऽस्मिन्नेव सूत्रे पूर्वं व्याख्यातं केवलं स्त्रीपुंसत्वकृतो भेदः अन्यत्सर्व समानम्, 'अणुब्भडपसत्थपीण कुच्छीओ' अनुद्भट प्रशस्तपीनकुक्षयः अनुद्भटौ - अस्पष्टौ प्रशस्तौपोनौ स्थूल कुक्षी - उदरस्य वामदक्षिणभागौ यासां तास्तथा, ' सण्णयपासाओ ' बोहिय आकोसायंतपउम गंभीरवियडणाभा" इनकी रोमराजिऋजुक - ऋज्वी सरल होती है, वक्र, कुटिल नहीं होती है, सम- बराबरहोती है कमती बढती नहीं होती है-संहित- आपस से मिली हुई होती है. अन्तर युक्त नहीं होती है. स्वभावतः पतली होती है. स्थूल नहीं होती है. कृष्णवर्ण वालो होती है. ऋषि के रोमों की तरह कपिश नहीं होती है. स्निग्ध - चिकनी होती है, दर्दरी नहीं होता है, आदेय नेत्रों को स्पृहणीय होती है, ललित सुन्दरता से युक्त होती है, सुजात होतो है. अच्छे ढंग से उत्पन्न हुई होती है, सुविभक्त होती है. अच्छी तरह विभाग से संपन्न होती है. कान्त कमनीय होती है. अतएव यह बड़ी सुहावनी लगती है, और जितनी भी रुचिर वस्तुएँ हैं उनकी भी अपेक्षा यह अधिक रुचिर होती है "गंगावर्त प्रदक्षिणावर्त” आदि सूत्र वर्णन के प्रसङ्ग में इसी सूत्र में पहिले व्याख्यात हो चुका है " अणुब्भड पत्थ पीणकुमनुष्य मराई, गंगावत पयाहिणावत्ततरंगभंगुर विकिरण तरुण बोहिअ आकोसायंत पउम : गंभीरविअडणाभा" शेभनी भिरात्रि ऋ ऋवी सरण होय थे. वह टिस होती નથી. સમ ખરાખર હૈાય છે. સહિત પરસ્પર મિલિત હૈાય છે. અન્તરથી યુક્ત હાતી નથી સ્વભાવતઃ પાતળી હાય છે. સ્થૂલ હાતી નથી કૃષ્ણ વણુ વાળી હોય છે, કપિના રામની જેમ કપિશ હૈાતી નથી. સ્નિગ્ધ સુચિકણુ હાય છે, ખરબચડી હાતી નથી આર્દ્રય નેત્રો માટે સ્પૃહણીય છે. લલિત સુંદરતાથી યુક્ત હાય છે સુજાત હાય છે. સારી રીતે ઉત્પન્ન થયેલ ડાય છે. સુવિભકત હાય છે. સારી રીતે વિભાગથી સંપન્ન હેાય છે. કાન્ત કમનીય છે. એથી તે ખૂબજ સેાહામણી લાગે છે. અને જેટલી રુચિકર વસ્તુએ છે તે સવ' કરતાં તે વધારે
थिर होय छे, “गंगावर्त प्रदक्षिणावर्त्त" वगेरे सूत्र भनुभवायुनना प्रसंगमा या सूत्रन वर्षानभां पडेलां व्यभ्यात थयेा छे “अणुब्भडपसत्थपीण कुच्छीओ सण्णयपासाओ संगय
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