Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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____भगवतीसूत्रे छाया-राजगृहे नगरे यावत्-एवम् अवादीत्-अस्ति भदन्त ! ईषत्पुरो वाताः, पश्चाद्वाताः मन्दावाताः, महावाता वान्ति ? हन्त, अस्ति, अस्ति खलु भदन्त ! पौरस्त्ये ईपत्पुरोवाताः, पथ्यावाता, मन्दाबाताः, महावाता वान्ति ? हन्त, अस्ति, एवं-पश्चिमे, दक्षिणस्मिन् , उत्तरस्मिन् , उत्तरपौरस्त्ये दक्षिण-पौरस्त्ये दक्षिण-पश्चिमे, उत्तर-पश्चिमे। यदा खलु भदन्त ! पौरस्त्ये ईषत्पुरोवाताः,
(रायगिहे नयरे) इत्यादि। सूत्रार्थ-(रायगिहे नयरे जाव एवं वयासी) राजगृह नगर में यावत् गौतम ने इसप्रकार पूछा-(अत्थि णं भंते ! ईसिं पुरेवाया, पत्था वाया, मंदावाया, महावया वायंति) हे भदन्त ! ईषत्पुरोवात, पथ्यवात, मंदवात, और महावात, ये सब हवाएं चलती हैं क्या ? (हंता अस्थि) हे गौतम ! हाँ ये सब हवाएं चलती हैं। (अस्थि णं भंते ! पुरस्थिमेणं ईसिंपुरेवाया, पत्थावाया, मंदावाया. महावायावायंति) हे भदन्त ! पूर्वेदिशा में ईषत्पुरोवात, पथ्यवात, मंदवात, एवं महावात ये सब हवाएँ हैं क्या ? (हंता, अस्थि एवं पच्चस्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं, उत्तर पुरथिमेणं, दाहिणपुरस्थिमेणं, दाहिणपच्चत्थिमेणं, उत्तरपच्चत्थिमेणं ) हां गौतम ! हैं । इसी प्रकार से पश्चिमदिशा में, दक्षिण दिशा में, उत्तरदिशा में तथा ईशानकोण में, आग्नेयकोण में, नैऋत्यकोण में, और वायव्यकोण में इन चार विदिशाओं में ये सब हवाएँ हैं ऐसा जानना (रायगिहे नयरे ) ४त्यादि
सूत्रार्थ-(रायगिहे नयरे जाव एवं वयासी) राड नगरमा माननु समक्स२१ यु. (यात्) गौतम स्वामी या प्रमाणे पूछयु-(अत्थिणं भंते ! ईसिं पुरेवाया पत्था वाया, मंदावाया वायति ? ) 3 महन्त ! शुष.धुरोपात ( સ્નિગ્ધાવયુ), પથ્યવાત, મંદવાત અને મહાવાત એ બધા પ્રકારનો વાયુ વાય छ भ३॥ १ (हतां अथि) , गौतम ! से मया ४२ वायु पाय छे. (अत्थिणं भंते ! पुरथिमेणं ईसिंपुरेवाया, पत्थावाया, मंदा वाया, महावाया वायति ) 3 महन्त ! पूहिशामा पत्धुशवात, पथ्यपात, भात भने भड़ा. पात, ये था प्र४२ना वायु पाय छे भरा ? (हता अस्थि ) गौतम वाय छ (एव पच्चत्थिमेणं, दाहिणेणं, उत्तरेण उत्तरपुरस्थिमेणं, दाहिणपुरस्थिमेणं, दाहिणपचत्थिमेण, उत्तरपच्चत्थिमेण) से प्रमाणे पश्चिम दिशामा, हक्षिए हिशामा ઉત્તર દિશામાં, ઈશાન કોણમાં અગ્નિકેણમાં, નૈઋત્યકેણમાં, અને વાયવ્ય
माय मया प्रशानी वा पाय छ, सेभ समन्. (जयाण भंते ईसिंपुरेवाया
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪