Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ६ ० ३ सू० १ महाकाल्पकर्मनिरूपणम् ८१९ पुद्गलाः उपचीयन्ते निषेकरचनतः उपचिता भवन्ति किम् ? अथवा बन्धनतो बध्यन्ते, निधत्ततश्चीयन्ते, निकाचनत उपचीयन्ते किम् ? 'सया समियं पोग्गला बझंति' सदा-सर्वदा-नित्यम् , समितं-निरन्तरं पुद्गलाः बध्यन्ते ? सदात्वं तु व्यवहारतोऽसातत्येऽपि स्यात् अत आह-समितप्रिति ' 'सया समियं पोग्गला उपचित होते हैं क्या ? अथवा-(यज्झति, चिज्जति, उवचिज्जति) ऐसी इन तीन क्रियाओं का जो सूत्रकार ने पाठ रखा है सो उसका अभिप्राय ऐसा भी हो सकता है कि प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश इन चार प्रकार के बंधो की अपेक्षा लेकर (बज्झति ) ऐसा प्रश्न किया गया है कर्म बन्धन के बाद कर्मों में दस १० प्रकार की अवस्थाएँ होती हैं उनमें एक अथवा निधत्त है सो इस अवस्था को लेकर (
चिति ) ऐसा प्रश्न किया गया है और निकाचित अवस्था को लेकर ( उवचि. ज्जंति ) ऐसा प्रश्न किया है (सया समियं पाग्गला बझंति ) ऐसा जो पूछा गया है-सो उसका अभिप्राय ऐसा है कि (जीवो समयपबद्धं षज्झति) इस सिद्धान्त स्वीकृत मान्यता को ध्यान में रखकर ही पूछा गया है-अर्थात् जीव क्या समयासमय कर्मका बंध करता है ? यहाँ जो (समियं) यह पद दिया गया है वह इस बात को दूर करने के लिये दिया गया है कि निरंतरता के अभाव में भी जो लोकरूढि से (सदा) छ १ “ सवओ पोग्गला उवधिज्जंति "शु मेव। ७५ समस्त हिशामाथी
॥ ३५ पुदीना -यय रे छ १ ( बज्झति, चिज्जंति, उवचिज्जति) આ ત્રણે કિયાઓને એ પણ અર્થ થાય છે કે પ્રકૃતિ, સ્થિતિ, અનુભાગ भने प्रदेश मा या२ मारना ५ धानी अपेक्षा " बज्ज्ञति" वो प्रश्न કરાવે છે.
કર્મબન્ધન થયા પછી કર્મોમાં દસ પ્રકારની અવસ્થાઓ થાય છે, તેમાંની मे नियत्त अवस्था छ, मन ते निधत्त अवस्थाने अनुसक्षीने “चिज्जति" मेवो प्रश्न पूछये। छ, भने नियन अवस्थाने अनुसक्षीने " उवचिज्जति " सवो प्रश्न पूछये। छे. “सयासमीयं पोग्गलो बज्झति” मा प्रश्न ५७१। पा. जना तु सपो छे “ जीवो समयपबद्ध बज्झति "शु०१ प्रत्ये। सभये भने ५५ ४२ छ १ सूत्रमारे " समियं " ५६ मामा मा०यु छ ते એ વાતને દૂર કરવાને માટે આપવામાં આવ્યું છે કે નિરન્તરતાનો અભાવ હોવા છતાં લોકો “સદા” પદનો ઉપયોગ કરતા હોય છે. અહીં તે સૂત્રકાર એમ બતાવવા માગે છે કે જીવ સદા (હંમેશા ) નિરન્તર (વ્યવધાન
श्री.भगवती सूत्र:४