Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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shreeन्द्रिका टी० श०६ ४०३ ० ४ कर्मस्थितिनिरूपणम्
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नीयवर्णाः सप्तापि कर्मप्रकृतयो वेदितव्याः, तथाहि - वेदनीयवर्जितानि दर्शनावरणादिकर्माण्यपि आभिनिवोधिकज्ञानि प्रभृतयश्चत्वारो ज्ञानिनः कदाचित् सरागावस्थायां बध्नन्ति कदाचिद् वीतरागावस्थायां न बध्नन्ति, केवलज्ञानी तु न नाति । वेयणिज्जं ट्ठिल्ला चत्तारि बधंति ' वेदनीयं कर्म अधरतनाः आधाचत्वार आभिनिवोधिकज्ञानिप्रभृतयोऽपि बध्नन्ति छद्मस्थानां शाताशातवेदनीयस्य वीतरागाणां च शातवेदनीयस्य बन्धकत्वात् । ' केवलणाणी भयणाए' केवलज्ञानी भजनया कदाचिद् बध्नाति वेदनीयम्, कदाचिन्न बध्नाति, सयोगिके वलिनां वेदनीयबन्धकत्वात् अयोगिकेवलिनां सिद्धानां चाबन्धकत्वात् ' भजनया' इत्युक्तम् |
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के सर्वथा क्षय से ही केवलज्ञानप्राप्त होता है ( एवं वेयणिज्जवज्जाओ सत्त चि) ज्ञानावरण कर्म की तरह से ही वेदनीयवर्ज सान कर्म प्रकृतियां जाननी चाहिये तथा च वेदनीयकर्म से रहित दर्शनावरणीय आदि कर्मों का भी अभिनिवोधिक आदि चारज्ञानवाले जीव कदाचित् बंध करते हैं और कदाचित् नहीं करते हैं। जब ये सरागावस्थापन होते हैं - तब तो करते हैं और जब ये बीतरागावस्थापन्न होते हैं तब नहीं करते हैं । केवलज्ञानी तो इनका बंध करते ही नहीं है । (वेयणिज्जं हे हिल्ला चत्तारि बंधंति) आदि के चार ज्ञानवाले जीव वेदनी कर्म का बंध करते हैं। क्यों कि छद्मस्थों के शातावेदनीय का और अशातावेदनीयका बंध होता है और वीतरागोंके केवल एक शातावेदनीय का ही बन्ध होता है । ( केवलणाणी भयणाए ) केवलज्ञानी जीव के वेदनीय कर्म का बंध विकल्प से होता है ऐसा जो कहा गया है उसका कारण यह है कि जब केवलज्ञानी जीव तेरहवें गुणस्थान में रहता विनाश थवाथी तो ठेवणज्ञान प्राप्त थतुं होय छे. ( एवं वेयणिज्जवज्जाओ सत्त वि ) वेहनीय भ सिवायनी साते प्रतियोना मध विषेनुं प्रथन જ્ઞાનાવરણીય કર્મોના કથન પ્રમાણે જ સમજવું. એટલે કે વેદનીય કમ સિવાયના સાતે કૌ મતિજ્ઞાની, શ્રુતજ્ઞાની, અવધિજ્ઞાની અને મનઃપયજ્ઞાની કયારેક ખાંધે છે અને કયારેક બાંધતા નથી-જ્યારે તેઓ સરાગ અવસ્થાવાળા હાય છે ત્યારે કરે છે પણ વીતરાગ અવસ્થાવાળા હાય ત્યારે કરતા નથી. ठेवणज्ञानी आत्मा तो तेभना अंध उरतो नथी. ( वेयणिज्जं हेठ्ठिल्ला चन्तारि बंध ति ) वेदनीय मनोध पडेला यार ज्ञानवाणा रे छे, છદ્મસ્થાને શાતાવેદનીયના અને અશાતાવેદનીયના બંધ ડાય છે, પણ વીત. रागाने मात्र शातावेदनीयन। ४ गंध होय छे. ( केवलणाणी भयणाए ) डेवणજ્ઞાની જીવ વેદનીય મના બંધ વિકલ્પે ખાંધે છે. આમ કહેવાનું કારણ એ
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श्री भगवती सूत्र : ४
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