Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयाद्रिकाटी ० श० ६ उ८४ सू० १ जीवस्य सप्रदेश प्रदेश निरूपणम् ९५७ सहितः १ अथवा अप्रदेशः प्रदेशरहितो भवति ? | भगवानाह - ' गोयमा ! नियमा सपए से ' हे गौतम! जीवः कालापेक्षया नियमात् नियमतः सप्रदेशः प्रदेशसहितो भवति, जीवस्थानादितया अनन्त समयस्थितिकत्वेन सप्रदेशत्व नियमात् तथा च यः एकसमयस्थितिकः स एव अप्रदेशः, द्वयादिसमयस्थितिकस्तु सप्रदेश एव भवतीति फलितम् । उक्तञ्च
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कर रहे हैं - इसमें गौतम ने प्रभुसे ऐसा पूछा 'जीवे णं भंते! काला. देसेणं किं सपएसे अपएसे ? ) हे भदन्त । जीव काल की अपेक्षा से क्या प्रदेशसहित है कि प्रदेशरहित है ? भगवान् इस प्रश्न का उत्तर देते हुए गौतम से कहते हैं कि - ( गोयमा) हे गौतम जीव (नियमा सपए से ) नियम से प्रदेश सहित हैं, तात्पर्य कहने का यह है कि जय काल की अपेक्षा लेकर जीव के प्रदेशसहित और प्रदेश रहित होने का विचार किया जता है तो वह नियम से काल की अपेक्षा प्रदेशसहित ही है, प्रदेशरहित नहीं है यही बात सिद्ध होती है। कारण कि जीव अनादि काल का है और अनन्तसमय की उसकी स्थिति है, इसलिये वह सप्रदेश है जो ऐसा नहीं होता है-अर्थात जो एकसमय की स्थितिवाला होता है, वही काल की अपेक्षा प्रदेशरहित अप्रदेश- होता है। दो आदि समय की स्थितिवाला नहीं क्यों कि जो दो आदि समय की स्थितिवाला होता है वह काल की अपेक्षा प्रदेश सहित ही होता है । कहा भी है-" जो जस्स " इत्यादि ।
स्वाभी भडावीर अलुने सेवा प्रश्न पूछे छे " जीवेणं भंते ! कालादेसेणं कि सपएसे अपएसे ! " डे लहन्त । शु अजनी अपेक्षामे व प्रदेश सहित 1 છે કે પ્રદેશ રહિત છે ?
उत्तर - ( गोयमा ! ) हे गौतम! ( नियमा सपए से ) नियमथी પ્રદેશ સહિત છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે જો કાળની અપેક્ષાએ જીવના સપ્રદેશત્વ અને અપ્રદેશત્વના વિચાર કરવામાં આવે, તે તે નિયમથી જ કાળની અપેક્ષાએ પ્રદેશ સહિત છે, પ્રદેશ રહિત નથી એ વાત સિદ્ધ થાય છે. કારણ કે જીવ અનાદિ કાળના છે અને મન'ત સમયની તેની સ્થિતિ છે, તે કારણે તે પ્રદેશ સહિત છે. જો જીવ એવે ન હાય-એટલે કે જો તે એક સમયની સ્થિતિવાળા હેાય તે તે પ્રદેશ રહિત હાઈ શકે છે. એ ત્રણ આદિ સમયની સ્થિતિવાળા જીવ અપ્રદેશી હાતા નથી, કારણ કે એ આદિ સમયની સ્થિતિવાળા તા કાળની અપેક્ષાએ પ્રદેશયુકત જ હોય છે. કહ્યું પણ છે કે— " जो जस्स " इत्यादि
श्री भगवती सूत्र : ४