Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस
कण्हराईसृगामा इ वा जात्र - संनिवेसा इ वा ? ' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु कृष्णराजिषु ग्रामाइतिवा, यावत्-निगमाइति वा, मडंबा इति वा, कर्बटाइति वा, पत्तनानि इति वा, द्रोणमुखा इति वा, आश्रमा इति वा, सन्निवेशा इति वा किं भवन्ति ? भगवानाह - 'णो इणट्ठे समट्ठे ' हे गौतम! नायमर्थः समर्थः, कृष्णराजिषु ग्रामादयो यावत् सन्निवेशा न भवन्तीतिभावः । गौतमः पृच्छति अस्थि णं भंते! कण्हराइसुणं उराला बलाहया संसेयंति, सम्मुच्छंति, संवासंति ? ' हे भवन्त ! अस्ति संभवति खलु कृष्णराजिषु उदाराः विशाला बलाहका वारिवाहका मेघा इत्यर्थः सस्वद्यन्ति, संस्वेदं प्राप्नुवन्ति, संमूर्च्छन्ति परस्पराघट्टनेन संमूच्छिता भवन्ति, कुर्वन्ति ? भगवानाह - हंता, अस्थि, ' हे गौतम! हन्त, सत्यम् कण्हराईसु गामाइ वा जाब संनिवेसाइ वा ) हे भदन्त ! उन कृष्णराजियों में ग्राम यावत् सन्निवेश हैं क्या ? यहां यावत् शब्द से (आकर नगर निगम, मडंब, कर्बट पतन, द्रोणमुख, आश्रम) इन स्थानोंका संग्रह हुआ है इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि हे गौतम! ( णो इणद्वे समट्ठे ) यह अर्थ समर्थ नहीं है-अर्थात् कृष्णराजियां में ग्राम से लेकर सन्निवेश तक के स्थान नहीं हैं। (अस्थि णं भंते! कण्णराईसु णं उराला वलाहया संसेयंति) हे भदन्त ! कृष्णराजियों में क्या उदार - विशाल - मेव संस्वेद को प्राप्त होते हैं ? परस्पर के आघट्टन से क्या वे वहां संमूच्छित हैं ? क्या वहां वे वृष्टि करते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं कि ( हंता अस्थि ) हां गौतम ! वहां ऐसा होता है । उदारमेघ वहां संस्वेद ( अस्थिण भते ! कण्हराईसु गामाइ वा जाव संनिवेसाइ वा ? ) शुते दृष्यરાજિએમાં ગામથી લઈને સન્નિવેશ પન્તના જનસ્થાના હોય છે ? અહીં जाब (पर्यन्त)” पहथी निगम, भडंग, उर्मट, पतन, द्रोलुभु, अने આશ્રમ આ સ્થાનાને ગ્રહણ કરવામાં આવ્યા છે. તે દરેકના અર્થ તમસ્કાયના સૂત્રમાં આપ્યું છે.
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महावीर अलुन उत्तर - ( णो इणट्ठे समट्ठे ) हे गौतम! या बात પણ સવિત નથી. કૃષ્ણરાજિમાં ગામ આદિ કઈ પણ સ્થાન સભવી શકતું નથી.
गौतम स्वाभीनो प्रश्न - ( अस्थि भंते ! कण्णराईसु ण उराला बलाह्या संसेयंति ) डे लहन्त ! कृष्णुराभिसोभां शु उद्वार ( विशाण ) भेध संस्वेद्दन પામે છે ? પરસ્પરના માઘટ્ટન ( સચૈાગથી ) શુ' તે સમૂછિત ( સયાજીત એકત્રિત ) થાય છે ? શું તેઓ ત્યાં વૃષ્ટિ વરસાવે છે ? महावीर प्रसुना उत्तर - " हता अस्थि "
डा, गौतम ! त्यां मेवुं
"
श्री भगवती सूत्र : ४