Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयवद्रिका टी० श० ६ उ०५ सू०२ कृष्णराजिस्वरूपनिरूपणम्
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दीनां संभवात् । गौतमः पृच्छति - ' अस्थि णं भंते ! चंदिम - सूरिय- गहगणअक्खत्त - तारारूवा ? ' हे भदन्त ! सन्ति खलु कृष्णराजिषु चन्द्र-सूर्य-ग्रहगणनक्षत्र - तारारूपाः ? भगवान् आह - ' णो इट्ठे समट्ठे ' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः कृष्णराजिषु चन्द्रादयो ज्योतिष्का न भवन्ति, कृष्णराजीनामत्यन्तान्धकारमयत्वात् तत्र तेषां स्वस्थानत्वासंभवात् । गौतमः पुनः पृच्छति - 'अस्थि णं कण्हराईसु चंदाभा इवा, मुराभा इवा ? ' हे भदन्त । अस्ति संभवति खलु कृष्णराजिषु चन्द्राभा, चन्द्रप्रभा इति वा, सुराभा सूर्यप्रभा इति वा ? भगवानाह - 'णो इण्डे सम' हे गौतम! नायमर्थः समर्थः कृष्णराजिषु चन्द्रप्रभादीनां प्रतिहतप्रकाशसद्भाव वहां हो सकता है। अब गौतम प्रभु से पूछते हैं कि ( अस्थि णं भंते! चंदिमसूरियगहगणनक्खत्तताराख्वा ) हे भदन्त ! कृष्णराजियों में चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण नक्षत्र एवं तारारूप हैं क्या ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि हे गौतम! ( णो इणट्ठे समट्ठे ) कृष्णराजियां अत्यन्त अंधकार मय हैं - अतः इनमें चन्द्रादिक ज्योतिष्क नहीं है। क्यों कि इनका इनमें स्वस्थान नहीं है । ( अस्थि णं कण्हराईसु चंदाभाइ वा, सुराभाइ वा ) हे भदन्त ! तो क्या कृष्णराजियों में चन्द्र की प्रभा और सूर्य की प्रभा भी नहीं है ? इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि ( णो इण्डे समट्ठे ) हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं हैअर्थात् कृष्णराजियों में चन्द्रप्रभा एवं सूर्यप्रभा हैं तो सही पर वे प्रतिहत प्रकाश वाली होने के कारण उनका वहाँ रहना भी नहीं रहने के डवे गौतम स्वामी महावीर प्रभुने सेवा प्रश्न पूछे छे ! ( अस्थिणं भंते! चंदिम, सूरिय, गगणनबत्तताराख्वा ) हे महन्त ! ष्णुरानियमां शु ं यन्द्रमा, सूर्य, थडगणु, नक्षत्रो, भने ताराशी हाय छे ?
उत्तर- ( गोयमा ! णो इण्ठे समट्ठे ) हे गौतम! कृष्णुरानियो અત્યંત અધકારમય હાય છે, તેથી તેમાં ચન્દ્રમા આદિ જ્યા તષિક દેવા હાતા નથી, કારણ કે તેમનું ત્યાં સ્વસ્થાન નથી.
प्रश्न – ( अत्थिण भ'ते ! कण्हराईसु चंदाभाइ वा सूराभाइ वा ? ) डे ભદન્ત ! તે શુ કૃષ્ણરાજિઆમાં ચન્દ્રની પ્રભા ( પ્રકાશ ) અને સૂર્યના પ્રકાશ હૈાય છે?
उत्तर- ( जो इणटूढे समठे ) हे गौतम ! या वात पाशु शस्य नथी. કૃષ્ણરાજિઓમાં ચન્દ્ર અને સૂર્યની પ્રભા હોય છે તે ખરી, પણ તેવું ત્યાં અધકાર રૂપે પરિણમન થઈ જવાને કારણે તે પ્રભા ત્યાં હાવા છતાં પણુ નહીં જેવી જ લાગે છે.
श्री भगवती सूत्र : ४