Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1115
________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श ६ उ०५ सू० २ कृष्णराजिस्वरूपनिरूपणम् ११०१ 3 6 च्छेत् ततः पश्चात् शीघ्रं शीघ्रं त्वरितं त्वरितमिति संग्राह्यम् । गौतमः पृच्छतिहराई भंते ! कति नामधेज्जा पण्णत्ता ? ' हे भदन्त ! कृष्णराजीनां खलु कति नामधेयाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - ' गोयमा ! अट्ठ नामधेजा पण्णत्ता' हे गौतम ! कृष्णराजीनाम् अष्ट नामधेयाः प्रज्ञप्ताः, कृष्णराजीनाम् अष्टौ नामानि, तान्येवाह-'तं जहा ' तद्यथा - 'कव्हराई इ वा, मेहराईइ बा, मेघा इवा, माघवई इ वा, वायफलिहाइ वा, वायपलिक्खाभाइ वा देवफलिहा इ वा, देवपलिक्खाभाइ वा ' कृष्णराजिरिति वा, कृष्णवर्णरेखामयपुद्गलत्वात् ' कृष्णराजि: ' इतिनाम १, मेघराजिरिति वा, कृष्णमेघरेखा सदृशस्वात् ' मेघराजि:' इतिनाम २, मघा इति वा, अन्धकारमयत्वात् पष्ठनार कपृथिवी सदृशत्वात् ' मघा ' इतिनाम ३, जाकर इनमें प्रविष्ट हो जाता है तो शीघ्र ही वह इनमें से कायगति के अतिवेग से और मनोगति के अतिवेग से युक्त होकर बाहर निकल आता है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ( कण्हराईणं भंते ! ) इन कृष्णराजियों के हे भदन्त ! ( कइनामधेजा पण्णत्ता) कितने नाम हैं, ऐसा पूछते हैं और प्रभु इस प्रश्न के उत्तर में उनसे (गोधमा ! अट्ठ नामधेजा पण्णत्ता ) हे गौतम ! इन कृष्णराजियों के आठ नाम हैं- ऐसा कहते हैं ( तं जहा ) वे आठ नाम इस प्रकार से हैं - ( कण्हराईइ वा ) कृष्णवर्ण वाले पुलों की रेखा स्वरूप होने के कारण इनका पहिला नाम ( कृष्णराजि) ऐसा है । ( मेहराईइ वा ) कृष्णमेघों की रेखा जैसी होने के कारण इनका दूसरा नाम (मेघराज ) ऐसा है । छठवें नरक की पृथिवी के समान अन्धकार मय होने के कारण इनका तीसरा नाम ( मघा ) તેના મનમાં ક્ષોભ અનુભવે છે. કદાચ કાઈ દેવ તે કૃષ્ણરાજિએની પાસે જઇને તેમાં પ્રવેશ કરે છે, તેા તે કાયતિ અને મનેાતિના અતિવેગથી યુક્ત થઈને તે કુષ્ણુરાજિઓામાંથી શીવ્રતાથી બહાર નીકળી આવે છે. प्रश्न - ( कण्हराई भते ! कइ नामघेज्जा पण्णत्ता ? ) हे लहन्त ! à કૃષ્ણરાજિઓનાં કેટલાં નામ કહ્યાં છે ? Gur-(maar! erg alaàsar qonar) & silan ! A zoquil. मोनां आई नाम ह्यां छे - ( त जहा ) ते माह नाम नीचे प्रमाणे छे( कण्हराईइ वा ) ( १ ) ते पृ॒ष्णुरात्रिभो अजां वर्षानां युद्धसोनी रेमा ३५ હાવાથી તેમનુ પહેલું નામ કૃષ્ણરાજિ " छे. (२) ( मेहराईइ वा ) મેઘાની રેખા જેવી હેાવાને કારણે તેમને “ મેઘરાજિ ” पशु उडे छे. (3) છઠ્ઠી નારકની પૃથ્વી જેવી અન્ધકારમય હોવાને લીધે તેનુ' ત્રીજું નામ (મલા) श्री भगवती सूत्र : ४ "

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