Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टोका श. ६ उ. ५ सू. २ कृष्णराजिस्वरूपनिरूपणम् १०८५ छन्ति, संवर्षन्ति ? हन्त, अस्ति । तत् खलु भदन्त ? किं देवः प्रकरोति, असुरः प्रकरोति, नागः प्रकरोति ? गौतम ! देवः प्रकरोति, नो असुरः, नो नागः प्रक. रोति । अस्ति खलु भदन्त ! कृष्णराजिषु बादरः स्तनितशब्दः, यथा उदारास्तथा । गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है-इन कृष्णराजियों में न ग्राम हैं, न निगम हैं, न मडंष हैं, न कर्षट हैं, न पत्तन हैं, न द्रोणमुख हैं, न आश्रम हैं और न सन्निवेश हैं। (अस्थि णं भंते! कण्हराईसु णं उराला बलाहया संसेयंति, संमुच्छंति, संवासंति) हे भदन्त ! कृष्णराजियों में क्या उदार-विशाल-मेघ संस्वेद को प्राप्त होते हैं ? परस्पर के संघटन से क्या वे संमूच्छित होते हैं ? वृष्टि करते हैं ? (हंता अस्थि ) हां गौतम! कृष्णराजियों में बड़े २ मेघ संस्वेद को प्राप्त होते हैं, संमूच्छित होते हैं और वृष्टि करते हैं । (तं भंते ! किं देवो पकरेह असुरो पकरेइ, नागोपकरेइ ) हे भदन्त ! कृष्णराजियों में संस्वेदन संमूर्च्छन और संवर्षण क्या देव करता है ? या असुर करता है ? नाग करता है ? ( गोयमा) हे गौतम ! ( देवो पकरेइ ) देव ही करता है ( णो असुरोपकरेइ णो नागो पकरेइ) असुर नहीं करता है और न नाग ही करता है । तात्पर्य कहने का यह है कि कृष्णराजियों में मेघों का संस्वेदन आदिकार्य देव करता है असुर नाग नहीं करते हैं क्यों कि असुर नाग का वहां गमन ही नहीं होता है । નથી ત્યાં ગામ પણ નથી, નિગમ પણ નથી, મડંબ પણ નથી, કબૂટ પણ નથી, પત્તન પણ નથી, દ્રોણમુખ પણ નથી, આશ્રમ પણ નથી અને સંન્નિ वेश ५ नथी, ( अत्थि णं भंते ! कण्हराईसु ण उराला बलाहया ससेयंति, संमुच्छंति, संवासंति १) 3 लन्त !
शुमिमा विभेवानु सहन થાય છે ખરૂં? શું તેઓ ત્યાં પરસ્પરના સાગથી સંમૂછિત (એકત્રિત) થાય छ १ शु. तो त्या परसे छे ? (हता, अत्थि) 1, गौतम ! ४०४२॥ मामा વિશાળ મેઘનું સંવેદન થાય છે, તેઓ ત્યાં મૂચ્છિત થાય છે અને વૃષ્ટિ १२सावे छे. (तं भंते ! किं देवो पकरेइ, असुरो पकरेइ, णागो पकरेइ ?) હે ભદન્ત ! કૃષ્ણરાજિઓમાં સંવેદન, સમૂઈન અને વર્ષણ કેણ કરે છે? શું દેવ કરે છે? શું અસુરકુમાર કરે છે? શું નાગકુમાર કરે છે?
(गोयमा !) गौतम ! (देवो पकरेइ) 0 ४२ छे, (णो असुरो पकरेइ, णो णागो पकरेइ ) असुरभार ४२ता नथी भने नागभार पक्ष्य કરતા નથી, કારણ કે અસુરકુમાર અને નાગકુમારનું ત્યાં ગમન જ થતું નથી.
श्री भगवती सूत्र:४