Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टी0 श० ६ उ०५२० २ कृष्णराजिस्वरूपनिरूपणम् १०८९ टीका-'कइणं भंते कण्हराईभो पणत्ताओ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त! कति कियत्यः कतिसंख्यकाः खलु कृष्णराजयः कृष्णवर्णपुद्गलरेखाः प्रज्ञता ? भगवानाह-'गोयमा ! अट्ट कण्हराईओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! अष्ट कृष्णराजयः प्रज्ञप्ता । गौतमः पृच्छति -'कहि णं भंते ! एयाओ अट्ट कणराईओ पण्ण चाओ ? हे भदन्त ! कुत्र कस्मिन् प्रदेशे एताः उपरिवगिताः अट कृष्णराजयः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा ! उपि सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं' हे गौतम ! सनत्कुमार-माहेन्द्रयोः कल्पयोः अथवा अनन्तवार वहां उत्पन्न हो चुके हैं । पर वे वहां बादर अप्कायिकरूप से उत्पन्न नहीं हुए हैं, न बादर अग्निकायिकरूप से उत्पन्न हुए हैं न बादर वनस्पतिकायिकरूप से ही उत्पन्न हुए हैं।
टीकार्थ-तमस्काय के समान होने से अब कृष्णराजियों की प्ररू. पणा सूत्रकार कर रहे हैं इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया है कि (कइ णं भंते ! कण्हराईओ पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! कृष्णराजियां कितनी कही गई हैं । कृष्णवर्णवाले पुद्गलों की रेखाओं का नाम कृष्णरजियां हैं। सो ये कितनी हैं ? इसके उत्तर में प्रभु ने उनसे ऐसा कहा (गोयमा) हे गौतम! (अट्ठ कण्णराईओ पण्णत्ताओ) कृष्णराजियां आठ कही गई हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसो पूछ रहे हैं कि (कहिणं भंते! एयाओ अट्ठ कण्हराईओ पग्णत्ताओ) हे भदन्त ! ये पूर्ववर्णित आठ कृष्णराजियां किस प्रदेश में कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! ( उपि सणंकुमारमाहिंदाणं कप्पाબાદર અગ્નિકાય રૂપે પણ ઉત્પન્ન થયા નથી અને બાદર વનસ્પતિકાય રૂપે પણ ઉત્પન્ન થયા નથી.
ટીકાર્યું–કૃષ્ણરાજિઓ પણ તમસ્કાયના જેવી હોય છે. તે કારણે સૂત્રકાર હવે તેમનું નિરૂપણ કરે છે–આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાवीर प्रभुने मेवे। प्रश्न पूछे छे ? ( कइ ण भते ! कण्हराईओ पण्णताओ ? ) હે ભદન્ત! કૃષ્ણરાજિએ કેટલી કહી છે! ( કૃષ્ણ વર્ણવાળાં પુદ્ગલની રેખાઓને કૃષ્ણરાજિઓ કહે છે. )
तेना वास मा५ता मडावीर प्रभु ४ छ-( गोयमा! अट्ट कण्हराईओ पण्णताओ ) 3 गौतम ! ०५२ मा3 3डी छे. ते ०५२ सानुं स्थान लवाने भाट गौतम स्वामी मा प्रधान प्रश्न पूछे छे-( कहिं ण भंते ! एयानो अटू कण्हराईओ पण्णत्ताओ ?) 3 महन्त ! 43 मि। च्या પ્રદેશમાં આવેલી છે ?
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪