Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1102
________________ - - ____ भगवतीले अप्परिणामाः, जीवपरिणामाः, पुद्गलपरिणामाः ? गौतम ! पृथिवीपरिणामाः, नो अप्परिणामाः, जीवपरिणामा अपि, पुद्गलपरिणामा अपि । कृष्णराजिषु खलु भदन्त ! सर्वे प्राणाः, भूताः, जीवाः, सत्त्वा उपपन्नपूर्वाः? हन्त गौतम ! असकृत् , अथवा अनन्तकृत्वः, नो चैव बादराकायिकतया, बादराग्निकायिकतया पा, बादरवनस्पतिकायिकतया वा ॥ मू० २ ॥ पुढवीपरिणामाओ, आउपरिणामाओ, जीवपरिणामाओ, पोग्गलपरिणामाओ ) हे भदन्त ! कृष्णराजियां क्या पृथिवी के परिणामरूप हैं ? या अप्काय के परिणामरूप हैं ? या जीव के परिणामरूप हैं ? या पुद्गल के परिणामरूप हैं ? ( गोयमा ) हे गौतम ! (पुढविप. रिणामाओ ) ये कृष्णराजियां पृथिवी के परिणमरूप हैं। (जो आउपरिणामाओ) अप्काय के परिणामरूप नहीं हैं। (जीव परिणामाओ वि, पुग्गलपरिणामाओ वि) जीव के परिणाम रूप भी ये कृष्णगजियां हैं और पुद्गल के परिणामरूप भी हैं। (कण्हराईसु णं भंते ! सम्वे पाणा, भूया, जीवा, सत्ता उववणगापुव्वा) हे भदन्त ! कृष्णराजि यों में समस्त प्राण, समस्त भूत, समस्त जीव, समस्त सत्व क्या पहिले उत्पन्न होचुके हैं ? (हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतक्खुत्तो, णो चेव णं वायर आउकाइयत्ताए बायर अगणिकाइयत्साए वा वायर वणस्सइकाइयत्ताए वा) हां गौतम! समस्तप्राणादि जीव अनेक बार ( कण्हराईओ ज' भते ! किं पुढवी परिणामाओ, आउपरिणामाओ, जीव परिणामाओ, पोग्गलपरिणामाओ?) सन्त ! शु निया पृथ्वीना પરિણામ રૂપ છે? કે અપકાયના પરિણામ રૂપ છે? કે જીવના પરિણામ રૂપ છે? કે પુદ્ગલના પરિણામ રૂપ છે? (गोयमा ! ) 3 गौतम ! (पुढवि परिणामाओ) ते या वीना परिणाम ३५ छ, (णो आउपरिणामाओ) मायना परिणाम ३५ नथी. (जीव परिणामाओ वि, पुग्गलपरिणामाओ वि) ते शनिया ना પરિણામ રૂપ પણ છે અને પુદ્ગલના પરિણામ રૂપ પણ છે. (कण्हराईसुण भते! सव्वे पाणा, भूया, जीवा, सत्ता, उववण्णपुव्वा १) હે ભદન્ત ! કૃષ્ણરાજિએમાં સમસ્ત પ્રાણ, સમસ્ત ભૂત, સમસ્ત જીવ અને સમસ્ત સત્વ શું પહેલાં ઉત્પન્ન થઈ ચુક્યાં છે? (हता, गोयमा ! असई, अदुवा अण तक्खुसो, णो व ण बायर आउ. काइयत्ताए बायर अगणिकाइयत्ताए वा, बायर वणस्सइकाइयत्ताए वा) &, ગૌતમ ! સમસ્ત પ્રાણાદિ જીવ અનેકવાર અથવા અનંતવાર ત્યાં ઉત્પન્ન થઈ ચુક્યા છે. પરંતુ તેઓ ત્યાં બાદર અપ્રકાયિક રૂપે ઉત્પન્ન થયા નથી, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪

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