Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमैयच द्रका टीका २० ६ उ० ५ सू० २ कृष्णराजिस्वरूपनिरूपणम् १०९१ विज्ञेयम् , एवं 'दाहिगऽभंतरा कण्हराई पचत्थिमबाहिरं कण्हराई पुट्टा । दक्षिााभ्यन्तरा दक्षिणदिग्भागाभ्यन्तरवर्तिनी कृष्णराजिः पश्चिमबाह्यां पश्चिम दिग्भागरहिवर्तिनी कृष्णराजि स्पृष्टा, तथा-पच्चत्थिमन्भंतरा कण्हराई उत्तरवाहिरं कण्हराई पुट्ठा' पश्चिमाभ्यन्तरा पश्चिम दिग्भागाभ्यन्तरवर्तिनीकृष्णराजिः उत्तरवाह्याम् उत्तरदिग्भागबहिर्वतिनों कृष्णराजि स्पृष्टा, एवम्-उत्तरमऽभंतरा कण्हराई पुरथिमबाहिरं कण्हराई पुट्ठा' उत्तराभ्यन्तरा उत्तरदिग्भागाभ्यन्तरवर्तिनी कृष्णरानिः पौरस्त्यबाह्यां पूर्वदिग्भागवहिर्वतिनों कृष्णराजि स्पृष्टा । 'दो पुरथिम-पच्चत्थिमाओवाहिराओ कण्हराईओ छलंसाओ' द्वे पौरस्त्य-पश्चिमबाह्ये पूर्वपश्चिनदिग्भागबहिर्वतिन्यौ कृष्णराजी पडले षड् अत्राः अंशाः ययोस्ते षट्जो पूर्वदिशा के भीतर की कृष्णराजि है वह दक्षिणदिशा के बाहिर रही हुई कृष्णराजि को छूनेवाली है। इसी तरह से आगे भी जानना चाहिये-( दाहिणभंतरा कण्हराई पच्चत्थिमवाहिरं कण्हराइं पुट्ठा) दक्षिणदिशा के भीतर की जो कृष्णराजी है वह पश्चिमदिशा के बाहिर की कृष्णराजी को छूनेवाली है। तथा-(पच्चस्थिमऽभतरा कण्हराई उत्तरबाहिरं कण्हराई पुठ्ठा) पश्चिमदिशा के भीतर की जो कृष्णराजी है वह उत्तरदिशा के बाहिर की कृष्णराजी को छूनेवाली है ( उत्तरम
भतरा कण्हराई पुरथिमबाहिरं कण्हराई पुट्ठा) इसी प्रकार जो उत्तर दिशा के भीतर की कृष्णराजि है वह पूर्वदिशा के बाहिर की कृष्णराजी को छूनेवाली है। (दो पुरथिम-पच्चस्थिमाओ पाहिराओ कण्हराईओ छलसाओ) पूर्व दिशा और पश्चिमदिशा के बाहिर की जो दो कृष्णरा. તેમાં પૂર્વ દિશામાં અંદરની જે કૃષ્ણરાજિ છે, તે દક્ષિણ દિશાની બહારની ४०४२॥निने ५छ. मे प्रमाण मा10 ५५५ समन्. ( दाहिण भतरा कण्हराई पच्चत्थिमबाहिर कण्हराई पुट्ठा) क्षिY हिशामा ५४२नी रे geરાજિ છે, તે પશ્ચિમ દિશામાં બહારની બાજુએ આવેલી કૃષ્ણજિને સ્પર્શ ४२ छ, (पच्चत्थिमऽभतरा कण्हराई उत्तरबाहिर कण्हराई पुठ्ठा) पश्चिम દિશામાં અંદરની જે કુણરાજિ છે, તે ઉત્તર દિશામાં આવેલી બહારની કૃષ્ણ शलिन। २५ ४३ छे, ( उत्तरमऽभतरा कण्हराई पुरस्थिमबाहिरं कण्हराई' g) એજ પ્રમાણે ઉત્તર દિશામાં અંદરની જે કૃણરાજિ છે, તે પૂર્વ દિશાની महा२नी २५ ४२ छे. ( दो पुरथिम-पच्चत्थिमाओ बाहिराओ कण्हराईओ छलंसोओ) पूर्व दिशा अनेपश्चिम दिशाम पानी में ३०१२॥रिया छे ते ७ भूणाजी (पान २नी) छे, तथा (दो
श्री.भगवती सूत्र:४