Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
राजिं नो व्यतिव्रजेत् । इयन्महालयाः खलु गौतम ! कृष्णराजयः प्रज्ञप्ताः । सन्ति खलु भदन्त । कृष्णराजिषु गेहा इति वा, गेहापणा इति वा ? नायमर्थः समर्थ : । सन्ति खलु भदन्त | कृष्णराजिषु ग्रामा इति वा, यावत् सन्निवेशा इति वा? नायमर्थः समर्थः । अस्ति खलु भदन्त ! कृष्णराजिषु उदारा बलाहकाः संस्विद्यन्ति, संमूवीईवएज्जा अत्थेगइअं कण्हराई वीईवएज्जा, अत्थेगइयं कण्हराई णो बीईएज्जा एमहालियाओ णं गोयमा कण्हराईओ पण्णत्ताओ ) हे गौतम ! तीन चुटकी बजाने में जितना समय लगता है उतने समय में कोह महर्द्धिक आदि विशेषणों वाला देव इस समस्त जंबूद्वीप का इक्कीस २१ बार चक्कर लगा आवे और वह इसी तरह से निरन्तर पन्द्रह दिन तक चलता रहे तब कहीं संभव है कि वह देव किसी एक कृष्णराज के पास तक पहुँच सके और किसी एक कृष्णराज के पास तक नहीं पहुंच सके। हे गौतम! इतनी विशाल ये कृष्णराजियां हैं। ( अस्थि णं भंते! कण्हराईस गेहाह वा गेहावणाइ वा ) हे भदन्त ! कृष्णराजियों के भीतर गृह और गृहहह-गृह बाजार हैं क्या ? उत्तर(गोयमा) हे गौतम! ( णो इणट्ठे समट्ठे ) यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् इन कृष्णराजियों में घर और घर बाजार बिलकुल नहीं है। (अस्थि णं भंते ! कण्हराई गामाइ वा जाव संनिवेसाइ वा ) हे भदन्त ! तो क्या इन कृष्णराजियों मे ग्राम यावत् सन्निवेश हैं ? ( णो इणट्ठे समट्ठे ) हे
अंबुद्दीवे दीवे जाव अद्धमासं वीईवएज्जा अत्थेगइअं कण्णराइ वीईवएज्जा, अत्थेati कहरा णो वीईवएज्जा - ए महालियाओ णं गोयमा ! कण्डराइओ पण्णत्ताओ ) હે ગૌતમ! ત્રણ ચપટી વગાડતા જેટલેા સમય લાગે છે એટલા સમયમાં કાઈ મહર્ષિંક આદિ વિશેષણેાવાળા દેવ આ સમસ્ત જંબૂદ્રીપની ૨૧ વાર પ્રદક્ષિણા કરવાને ધારો કે સમથ છે તે દેવ એટલી જ શીઘ્રગતિથી નિરન્તર ૧૫ દિવસ ચાલ્યા કરે, તે તે કદાચ કોઇ એક કૃષ્ણુરાજીની પાસે પહેાંચી શકે છે અને કોઇ એક કૃષ્ણરાજીની પાસે પણ પહેાંચી શકતા નથી. હે ગૌતમ ! તે કૃણુशलभेो भेटली अधी विशाल छे ! ( अत्थि णं भंते! कण्हराईसु हाइ वा महाषणाइ वा ) के लहन्त ! धृष्णुरानियोभां धरो छे ? डाट छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम! ( णो इणट्ठे समट्ठे ) ते दृष्ट्णुरानियोभां घर पशु नथी याने હાટ પણ નથી.
( अस्थि भंते! कण्हराईसु गामाइ वा जाव संनिवेसाइ वा ? ) डे लहन्त ! તા શુ' તેમાં ગામ આદિ સન્નિવેશ પન્તનાં સ્થાને છે ખરાં?
( णो इणट्ठे समट्ठे ) हे गौतम! मेनुं । य स्थान तेमां होल
श्री भगवती सूत्र : ४