Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे सप्रदेशाश्च अप्रदेशाश्व, इति एकभङ्गवन्त एव । सिद्धपदं त्वत्र न वक्तव्यम् सिद्धानां भव्याभव्यत्वविशेषणानुपलब्धेः। ‘णोभवसिद्धिय-णोअभवसिद्धियजीवसिद्धेहिं तियभंगो' नो भवसिद्धिक-नो अभवसिद्धिक-जीव सिद्धयोस्त्रयो भगा वेदितव्याः, तथाहि-एतद् नोभवसिद्धिक नोअभवसिद्धिक विशेषणविशिटम् उपर्युक्तजीवसिद्धदण्डकद्वयं पठितव्यम् एकत्वाभिलापाकारश्चेत्थम्-' णोभवसिद्धिय-णोअभवसिद्धिएणं भंते ! जीवे किं सपएसे, अपएसे ? गोयमा ! सिय सपएसे सिय अपएसे' इत्यादि । एवं बहुत्वदण्ड कालापोऽपि वक्तव्यः, के ये एक भंगवाले ही कहे गये हैं। यहां भव्य अभव्य के प्रकरण में सिद्धपद नहीं कहना चाहिये-क्यों कि सिद्धों में भव्य अभव्य इन दोनों विशेषणों का अभाव हो गया है। (णो भवसिद्धिय-णो अभवसिद्धिय -जीवसिद्धेहिं तियभंगो" नो भवसिद्धिक नो अभवसिद्धिक जीव एवं सिद्धों में तीन भंग होते हैं-तात्पर्य यह है कि " भव्य नहीं, अभव्य नहीं" ऐसे विशेषणों वाले जीवादिक दो दण्डक कहना चाहिये-इनसे लगता हुआ एकत्व अभिलाप का आकार इस प्रकार से हैं-(णो भवमिद्धिय जो अभवसिद्धिएणं भंते ! जीवे किं सपएसे अपएसे ? ) गौतम यहां ऐसा प्रश्न किया है कि हे भदन्त ! जो जीव न भवसिद्धिक है और न अभवसिद्धिक है ऐसा वह जीव क्या सप्रदेश होता है या अप्रदेश होता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! (सिय सपएसे सिय अपएसे) इत्यादि-ऐसा जीव कदाचित् सप्रदेश होता है और कदाचित् अप्रदेश होता है। इसी तरह से बहुભવ્ય અભવ્યના પ્રકરણમાં સિદ્ધને સમાવેશ કરવો જોઈએ નહીં, કારણ કે सिद्धमा सय भने भव्य से भन्ने विशेषणे। सभवी शताश नथी "णो भवसिद्धिय, णो अभवसिद्धिय-जीव सिद्धेह तियभंगो" न लपसिद्धि, नो અભવસિદ્ધિક જીવ અને સિદ્ધોમાં ત્રણ ભંગ થાય છે. આ કથનનું તાત્પય એ છે કે “ભવ્ય નહીં, અભવ્ય નહીં ” એવાં વિશેષણવાળાં જીવાદિક બે દંડક કહેવા જોઈએ. તેમને લાગુ પડતા એકત્વ વિષયક અભિશાપ આ પ્રમાણે छ-" णो भवसिद्धिय णो अभवसिद्धिएणं भंते! जीवे कि सपएसे अपएसे" ગૌતમસ્વામી અહીં એ પ્રશ્ન કરે છે કે “હે ભદન્ત ! જે જીવ ન ભવસિદ્ધિક અને ન અભાવસિદ્ધિક છે, તે શું સપ્રદેશ હોય છે કે અપ્રદેશ હોય છે? તેને
पाम मातi मडावी२५ ४ छ - "गोयमा ! " गौतम!" सिय सपएसे, सिय अपएसे" मेव। ७३ या२४ सप्रदेश डाय छ भने या
श्री. भगवती सूत्र:४