Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1075
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ६ उ० ५ सू०१ तमस्कायस्वरूपनिरूपणम् १०६१ " गौतमः पुनः पृच्छति - 'तमुकारणं भंते । केमहालए पण्णत्ते ? ' हे भदन्त ! तमस्कायः खलु कियन्महालयः कियत्परिमितो विशाल इति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्त्रदीव-समुद्दाणं सभंतराए, जाब- परिक्खेdj पत्ते' हे गौतम! अयं खलु जम्बुद्वीपो द्वीपः सर्वद्वीप - समुद्राणां सर्वाभ्यन्तरकः सर्वाभ्यन्तरे वर्त्तमानः मध्यजम्बुद्वीप इत्यर्थः यावत - परिक्षेपेण परिधिना प्रज्ञप्तः, यावत्करणात् - ' एगं जोयणसयसहस्सं आयामविवखंभेणं, तिगि जोयणसयसहस्साइं सोलससहस्साई दोण्णियसत्तावी से जोयणसए, तिगि कोसे अट्ठावीसं च धणुस तेरस य अंगुलाई अर्द्धगुलं च किंचिविसेसाहियं ' इति संग्राह्यम् । 'एकं योजनशतसहस्रम् - आयामविष्कम्भेण त्रीणि योजनशतसहस्राणि षोडश सहत्राणि, द्वे सप्तविंशतिः योजनशते, त्रयः क्रोशाः, अष्टाविंशतिश्व धनुःशतम्, त्रयोदश चाङ्गुलानि, अर्धाङ्गुलं च किञ्चिद्विशेषाधिकम्' इतिच्छाया 'देवेणं महिड्डिए, अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि - (तमुक्काए णं भंते के महालये पण्णत्ते ) हे भदन्त ! यह तमस्काय कितना बड़ा - विशाल कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि - ( गोयमा ! अयं णं जंबूदी वे दीवे सवदीवसमुद्दाणं सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं पण्णत्ते ) हे गौतम ! समस्त द्वीप और समस्त समुद्रों के बीच में वर्तमान यह जंबूद्वीप नामका द्वीप-मध्य जंबूद्वीप यावत् परिक्षेप वाला कहा गया है- यहां ( यावत् ) शब्द से - " एगं जोयणसय सहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिष्णि जोयणमय सहस्साई सोलससहस्साइं दोणि य सत्तावीसे जोगणसगाई तिष्णि कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाई अर्द्धगुलं च किंचि विसेसाहियं " इस पाठ का संग्रह हुआ है । " देवेणं महिड्डिए जाव હવે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એવા પ્રશ્ન પૂછે છે કે “ तमुक्काए णं भंते ! के महालये पण्णत्ते ? ) हे लहन्त ! तमस्सायने डेंटला विशाण उद्यो छे ? उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतम! ( अयं णं जंबूदी दीवे सव्वदीवस मुक्षणं सव्वन्तराए जाव परिक्खेवेणं पण्णत्ते ) समस्त द्वीप भने समस्त समुद्रोनी वरचे रडेला या द्वीप नामनो द्वीप-मध्य ४जूद्रीय........ यावत् परिक्षेपवाणी उद्यो छे. अहीं " जाव ( यावत् ) पहथी नीथेनो सूत्रपाठ थ थयो छे - ( एग जोयणसयसहस्स आयामविवखंभेणं, तिष्णि जोयणसयसइस्साइ' सोलससहरसाइ दोण्णिय सत्तावीसे जोयणसयाई तिण्णि कोसे अट्ठावीस च धणुस तेरस य अंगुलाई अर्द्धगुलं च किंचि विसेसाहिय) मेड साम योजननी લંબાઇ અને પહેાળાઈવાળા અને ૩૧૬૨૨૭ યોજન, ૩ કાસ, ૧૨૮ એકસા અઠ્ઠાવીસ ધનુષ અને ૧૩ા 'ગુલથી સહેજ અધિક પરિધવાળા આ સમસ્ત श्री भगवती सूत्र : ४

Loading...

Page Navigation
1 ... 1073 1074 1075 1076 1077 1078 1079 1080 1081 1082 1083 1084 1085 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106 1107 1108 1109 1110 1111 1112 1113 1114 1115 1116 1117 1118 1119 1120 1121 1122 1123 1124 1125 1126 1127 1128 1129 1130 1131 1132 1133 1134 1135 1136 1137 1138 1139 1140 1141 1142