Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्रे
८७२ तथा वेदनीयं कर्म जघन्येन द्वौ समयौ, तथा च केवलयोगप्रत्ययबन्धापेक्षया वेदनीयं कर्म द्विसमयस्थितिकं भवति, तत्र एकस्मिन् समये बध्यते, द्वितीये तु वेद्यते यत्तु " वेयणियस्स जहण्गा बारस, नाम-गोयाण अट्ठ मुहुत्ता" वेदनीयस्य जघन्या द्वादश, नाम-गोत्रयोः अष्टमुहूर्ता इत्युक्तम् तत् सकषायस्थिति बन्धमाश्रित्य वेदितव्यमिति न तद्विरोधः उत्कर्षेण यथा ज्ञानावरणीयं कर्म तथैव वेदनीयमपि कर्म बोध्यम् , तथा च वेदनीयस्यापि कर्मणः उत्कृष्टतः स्थितिकाल: विसहस्रवर्षन्यून स्त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोटीप्रमाणः । — मोहणिज्जं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ , मोहनीयं कर्म समय की है और उत्कृष्ट स्थिति ज्ञानावरणीय के समान तीस ३० कोडाकोडी सागरोपम की है। यहां जो वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति दो समय की कही गई है वह केवल योग के निमित्त से होने वाले बंध की अपेक्षा से कही गई है-ऐसी स्थिति में वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति दो समय की होती है एक समय में वह बंधता है, और द्वितीय समय में वह वेदा जाता है जो (वेयणियस्स जहण्णा बारस, नाम गोयाण अट्ट मुहुत्ता ) वेदनीय कर्म के विषय में ऐसा कहा गया है कि वेदनीयकर्म की जघन्य स्थिति १२ मुहूर्त की होती है सो यह कथन कषायसहित जीवों की अपेक्षा से ही जानना चाहिये क्यों कि कषाययुक्त जीवों के जो वेदनीय कर्म का जघन्य स्थिति बंध होता है वह १२ मुहर्त का होता है उत्कृष्ट स्थिति काल वेदनीय कर्म का तीन हजार वर्ष कम तीस सागरोपम कोडाकोडी प्रमाण का है (मोहणिज्जं जहण्णेणं ઓછામાં ઓછી સ્થિતિ એ સમયની અને વધારેમાં વધારે સ્થિતિ જ્ઞાનાવરણીય કર્મના જેટલી જ (ત્રીસ કોડાકોડી સાગરોપમની) છે. અહીં જે વેદનીય કર્મની જઘન્ય (ઓછામાં ઓછી) સ્થિતિ બે સમયની કહી છે તે માત્ર
ગને કારણે થનારા બંધને અનુલક્ષીને કહી છે–એટલે કે એવી પરિસ્થિતિમાં વેદનીય કર્મની જઘન્ય સ્થિતિ બે સમયની હોય છે–એક સમયમાં તે બંધાય छ भने भी समये तेनुयन थाय छे. ( वेयणियस्स जहण्णा बारस, नाम गोयाण अटूमुहत्ता ) ! ४थन प्रभार वहनीय भनी मा२ भुक्तनी ४ धन्य સ્થિતિ કહી છે તે કષાય યુક્ત છાની અપેક્ષાએ જ સમજવી, કારણ કે કષાયયુક્ત જીના વેદનીય કર્મને જે જઘન્ય સ્થિતિ બંધ થાય છે, તે બાર મુહૂર્તનો હોય છે, વેદનીય કર્મને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિકાળ ત્રીસ સાગરોપમ કેડા 10 ४२i ५ २ १५ माछा डाय छे. (मोइणिज्ज जहणेणं अंतोमुहत्तं,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪