Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टीका श० ६ उ० ३ सू० ४ कर्मस्थितिनिरूपणम्
८९३ गौतम ! मूक्ष्मो बध्नाति, बादरो भजनया, नोमुक्ष्म-नोबादरो न बध्नाति, एवम् आयुष्कवर्माः सप्ताऽपि, आयुष्कं सूक्ष्मो, बादरो भजनया, नोमुक्ष्म-नो बादरो न बध्नाति ? ज्ञानावरणीयं खलु भदन्त ! कर्म किं चरमो बध्नाति, अचरमो बध्नाति ? गौतम ! अष्टाऽपि भजनया ।। मू० ५ ॥
टीका-णाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधइ ? ' गौतमः पृच्छतिहे भदन्त ! ज्ञानावरणीयं खलु कर्म किम् स्त्री बध्नाति ? ' पुरिसो बंधइ ? ' का बंध सूक्ष्मजीव करता है बादर जीव तो भजना से इसका बंध करता है, जो नो सूक्ष्म और नो धादर हैं वे इसका बंध नहीं करते हैं। ( एवं सत्त वि, आउए सुहुमे, वायरे भयणाए, जो सुहुम को बायरे न बंधइ ) इसी प्रकार से ये जीव आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्म प्रकृतियों का बंध करते हैं ऐसा जानना चाहिये। ये दोनों सूक्ष्म बादर जीव आयु कर्म का बंध भजना से करते हैं। तथा जो नो सूक्ष्मजीव हैं और नो बादर जीव हैं वे आयुकर्म का बंध नहीं करते हैं । (णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं चरिमे बंधइ, अचरिमे बंधइ) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध जो चरम जीव होता है वह करता है कि जो अचरम जीव होता है वह करता है ? (गोयमा ! अट्ट वि भयणाए) हे गौतम । ऐसे जीव आठों कर्मप्रकृतियों का बंध भजना से करता है।
टीकार्थ-ज्ञानावरणीय आदि कर्म के प्रस्ताव से सूत्रकार इस सूत्र द्वारा उन ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के बांधनेवालों का निरूपण करने के लिये सर्वप्रथम स्त्री आदि द्वारा का कथन कर रहे हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया कि (णाणावरणिजं णं भंते ! कम्मं किं इत्थी ४२. नथी. ( एवं आउगवज्जाओ सत्त वि, आउए सुडुमे, बायरे भयणाए, णो सुहम णो बायरे न बधइ) मेरी प्रमाणे ते वे मायुभ सिवायना सात કર્મોને બંધ કરે છે તેમ સમજવું. સૂક્ષમ અને બાદર જી આયુકમને બંધ કરે છે પરંતુ સૂક્ષ્મ અને બાદર છ આયુકમને બંધ કરતા નથી. (णाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्मं किं चरिमे बधइ, अचरिमे बधइ ?) હે ભદન્ત ! શું ચરમ શરીરી જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરે છે? કે मयम शरीरी ७१ रे छ१ (गोयमा ! अदु वि भयणाए) गौतम! એ જીવ આઠે કમ પ્રકૃતિને બંધ વિકલ્પ કરે છે.
ટીકાથઆ સૂત્રમાં સૂત્રકારે જ્ઞાનાવરણીય આઠ કર્મોના બંધનું નિરૂકર્યું છે. સૌથી પહેલાં સૂત્રકાર સ્ત્રી આદિ દ્વારનું કથન પ્રશ્નોત્તરે દ્વારા કરે છે.
गौतम स्वामी महावीर प्रभुने मेरे प्रश्न पूछे छे । “णाणावरणिज्ज
श्री. भगवती सूत्र:४