Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
केवलिनः केवलज्ञानिनः, तत् इति उपसंहरन्नाह - तेनार्थेन ' इति तस्मात् कार - णात् केवली भगवान्, चक्षुरादीन्द्रियाणि विनाऽपि सर्व जानाति, पश्यति, केवलज्ञान के वलदर्शनसम्पन्नत्वात् यावत्करणात्-पट् सु अपि दिक्षु मितम्, अमितम् सर्वं जानाति, पश्यति' इत्यादि संग्राहम् ॥ १४ ॥
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मूळम् - केवलीणं भंते ! अस्सि समयंसि जेसु आगासपसेसु हत्थं वा, पायं वा, बाहुं वा, ऊरुं वा ओगाहित्ता णं चिट्ट, पभूणं भंते! केवली सेयकालंसि वि, तेसु चेत्र आगासपएसेसु हत्थं वा, जाव - ओगाहित्ताणं चिट्ठित्तए ? गोयमा ! णो इणट्टे, समट्टे, से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ केवली णं अस्ति समयंसि जेसु जाव चिह्न णो णं पभू केवली से कालंसि वि, तेसु चेव आगासपएसेसु हत्थं वा जाव चिट्टित्तए ? गोयमा ! केवलिस्स णं वीरिय-सजोग सद्दव्वयाए चलाई उत्रकरणाई भवंति चलोवकरणट्टयाए यणं केवली अस्सि समयंसि जेसु आगासपएसेसु हत्थं वा, जाव - चिटूइ, णो णं पभू केवली सेयकालंसि वि तेसु व आगासपएसेसु - हत्थं वा, जाव-चिट्टित्तए से तेणट्टे णं गोयमा ! एवं वुच्चइ केवलणिं अस्सि समयंसि जाव चिट्ठित्तए । सू० १५ ॥
भगवान् का यावत् दर्शन निरावरण होता है। (से ते ० ) इसकारण हे गौतम केवलज्ञान और केवलदर्शन से युक्त होने से केवली चक्षुरादिक इन्द्रियों के बिना भी समस्त पदार्थों को जानते हैं और देखते हैं। यहां यावत्पदसे " छहों दिशाओं में भी मित अमित सब पदार्थों को जानते और देखतें हैं ) ऐसा पाठ ग्रहण किया गया है | सूत्र १४ ॥
रडित दर्शनना धा२४ होय छे. ( से तेणट्टेण ० ) ते अर हे गौतम! व જ્ઞાન અને કેવળ દનથી યુક્ત એવા કેવળી ભગવાન ચક્ષુ આદિ ઇન્દ્રિયેાની सहायता विना या समस्त पहार्थेने लगी-हेजी रा छे. ॥ सू. १४ ॥
श्री भगवती सूत्र : ४