Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
भगवतीसूत्रे
पतेस्तु महत्यस्ताः क्रियाः भाण्डस्य तदायत्तत्वात् । अथ गौतमः पुनः पृच्छति'गाहावइस्स णं भंते ! भंड विकिणमाणस्स, जाव-भंडे य से उबणीए सिया' हे भदन्त ! यदा गाथापतेः खलु भाण्ड विक्रीणानस्य यावत्-क्रयिको भाण्ड स्वादयेत् , भाण्डं च तस्य क्रयिकस्य ग्राहकस्य उपनीतम् उपलब्धं स्यात् यदा गाथापतेः सकाशात् क्रयिकेण भाण्डमुपलब्धमित्याशयः, तदा-' कइयस्स णं भंते ! ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ, जाव-मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ ? ' हे भदन्त ! क्रयिकस्य ग्राहकस्य खलु तस्मात् भाण्डात् किम् आरम्भिकी क्रिया क्रियते ? यावत्-मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया क्रियते भवति ? ' गहावइस्स उठाया नहीं है-अतः इनके निमित्त को लेकर जो इन आरंभिकी आदि क्रियाओं में महत्ता आनी चाहिये थी वह नहीं आती है । गाथापति के जो इन क्रियाओं में महत्ता कही गई है उसका कारण सिर्फ यही है कि वे भाण्ड अभीतक उसकी मालिकी में ही रखे हुए हैं-अतः उन भाण्डोंके आश्रित होरही क्रियाओंमें गुरुता स्वतः ही आ जाती है । ___अब गौतम स्वामी प्रभु से पुनः पूछते हैं कि (गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विकिणमागस्स जाव भंडे य से उवणीये सिया) हे भदन्त गाथापति जब अपने उन भाण्डों को खरीददार के यहां पूर्णरूप से पहँचा देता है अर्थात्-खरीददार जब उन भाण्डों को गाथापति के यहां से ले जाकर अपने अधीन में कर लेता है, तब ( कायस्स णं भंते ! किं आरंभिया किरिया कज्जइ ? जाव मिच्छादसण वत्तिया किरिया कज्जा) हे भदन्त ! जो उन भाण्डों का खरीददार जिसने अपने उन्हें अपने अधीन कर लिया है, उसे क्या उन भाण्डों के निमित्त से आरंभिको ત્યાંથી હજી સુધી તે વાસણે પિતાને ત્યાં પહોંચાડ્યા નથી તે કારણે તે ક્રિયાઓમાં જે અધિકતા હોવી જોઈએ તે આવતી નથી. વાસણ વેચનારને તે ક્રિયાઓ અધિક પ્રમાણમાં લાગવાનું કારણ એ છે કે તે વાસણું હજી સુધી તેને ત્યાં જ–તેને આધીન પડેલાં છે. તેથી તે વાસણોને નિમિત્તે તે ક્રિયાઓમાં ગુરુતા આપોઆપ આવી જાય છે.
व गौतम स्वामी महावीर प्रसुने त्रीने प्रश्न पूछे छे है-'' गाहावइस्स णं भते ! भंड विकिणमाणस्स जाव भडे य से उवणीये सिया" महन्त ! न्यारे વાસણો ખરીદનાર તે વાસણને તે વ્યાપારીને ત્યાંથી પિતાને ત્યાં લઈ જાય છે. तवासनाने पाताल साधीन छ-त्यारे “कायस्स ण भते ! किं आभिया किरिया कज्जइ ? जाव मिच्छादसगवत्तिया किरिया कज्जह? " તે વાસણ પિતાને ત્યાં લઈ જનાર માણસને વાસણને નિમિત્ત આરંભિકીથી
श्री.भगवती सूत्र:४