Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ० ६ सू० ३ धनुर्विषये निरूपणम्
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तापयति, क्लमयति, स्थानात् स्थानं संक्रमयति, जीविताद् व्यपरोपयति ' तावं चणं से पुरि सेकाइयाए, जाव चउहिं किरियाहिं पुढे' तावच्च खलुस बाणोत्क्षेपकः पुरुषः कायिक्या यावत्-माणातिपातक्रियां विहाय चतसृभिः क्रियाभिः स्पृष्टः | एवम् - 'जेसिं पियणं जीवाणं सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए, तेत्रि जीवा चउहिं किरियाहि' येषामपि च जीवानां शरीरैः धनुः निर्वर्तितं निष्पादितम्, तेऽपि जीवाः चतसृभिः क्रियाभिः स्पृष्टाः भवन्ति इत्यग्रेणान्वयः, तथा धणुपुट्ठे चउहिं, हारू चउर्हि, उम्र पंच, सरे, पचणे, फले, हारूपंचहि ' धनुः पृष्ठ दण्डगुणादि समुदाय रूपउन्हें गोले जैसा गोल बना देता है, उन्हें श्लिष्ट कर देता है, आपस में एक दूसरे के साथ एक दूसरे को चिपका सा देता है, परस्पर में उन्हें एक दूसरे के शरीर के साथ रगडवा सा देता है, उनके अङ्गोपाङ्गों को वह छू भी लेता है, सब तरह से उन्हें वह पीडा भी देने लगता है, उन्हें तिलमिला देता है, एक स्थान से दूसरे स्थान पर उन्हें पहुँचा देता है और अन्त में उनके जीवन से उन्हें वियुक्त भी कर देता है, अतः वह बाण प्रक्षेपक पुरुष कायिकी क्रिया से लेकर चार स्पृष्ट होता है-प्राणातिपातिकी क्रिया यहां छोड़ दी गई है। ( एवं जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए, ते वि जीवा
हिं करियाहिं ) इसी तरह से जिन जीवों के शरीरों से वह धनुष बना है, वे जीव भी चार क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं । ( धणु पुढे चउहिं) धनुः पृष्ठ भी चार क्रियाओं से, ( जीवा चउहिं ) धनुष की डोरी भी चार क्रियाओं से, (पहारु चउहि ) स्नायु भी चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है । परन्तु ( उ पंचहि ) जो इषु-शर, पत्र, फल और स्नायु का समुदाय रूप जो बाण है वह पंच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है, दण्ड गुण રહિત કરવા પન્તની ઉપરોક્ત સઘળી ક્રિયાએ કરતું હાય, ત્યારે તે બાણુ ફૂંકનાર ધનુર કાયિક ક્રિયાથી શરૂ કરીને ચાર ક્રિયાઓથી ધૃષ્ટ થાય છે, પ્રાણાતિપાતિકી ક્રિયાથી તે પૃષ્ટ થતા નથી. એટલે કે પ્રાણાતિપાતિકી ક્રિયા જન્ય કાઁખ ંધ તે કરતા નથી-માકીની ચારે ક્રિયાજન્ય ક`બધ કરે છે
( एवं जेसि पयणं जीवाण सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए, ते वि जीवा उहि किरियाहि ) मे प्रभा ? वनस्पतिप्रय मोहि भवानी शरीरमाथी તે ધનુષ બન્યુ હાય છે, તે જીવા પણ કાયિકી આદિ ચાર કિયાજન્ય ક बघ रे छे. (धणुपुट्ठे चउहि ) धनुपृष्ट पशु यार डियागोथी, (जीवा चउहि ) धनुषनी छोरी पशु यार डियागोथी ( व्हारू चउहि ) भने धनुषने गांधवानी ચામડાની દોરી પણ કાયિકી આદિ ચાર યિા એથી સ્પૃસ્ટ બને છે એટલે
श्री भगवती सूत्र : ४