Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका २० ५० १९०५ देवलोकनिरूपणम् ७३३ गाथा-'किमिदं राजगृहमिति च उद्घोतोऽन्धकारः समयश्च,
पान्तेिवासिपृच्छा, रात्रिं दिवानि देवलोकाश्च ॥ तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ सू० ५ ॥
टीका--'कइविहा णं भंते ! देवलोगा पण्णत्ता' गौतमः पृच्छति--हे भदन्त ! कतिविधाः कियत्पकाराः खलु देवलोकाः प्रज्ञप्ताः कथिताः ? भगवानाह -' गोयमा ! चउबिहा देवलोगा पन्नत्ता' हे गौतम ! चतुर्विधाः चतुःमकाराः खलु देवलोकाः प्रज्ञप्ताः कथिताः 'तं जहा भवणवासी-वाणमंतर-जोइसिय"राजगृह नगर यह क्या है ? दिनमें उद्योत और रात्रिमें अंधकार क्यों होता है ? समय आदि रूप काल का ज्ञान किन जीवों को होता है और किन जीवों को नहीं होता है ? रात्रि और दिवस के प्रमाण में श्री पार्श्वनाथ जिन के प्रशिष्यों के प्रश्न ? देवलोक संबंधी प्रश्न" इतने विषय इस उद्देशक में आये हैं । (सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) हे भदन्त ! आपका कहा हुआ भाव सर्वथा सत्य ही है-सर्वथा सत्य ही है।
टीकार्थ-(देवलोकों में उत्पन्न हुए ) ऐसी बात पहिले कही गई है -सो देवलोक के स्वरूप को निरूपण करने के लिये सूत्रकार यहां पर कहते हैं इसमें गौतम ने उनसे यह पूछा है कि ( कइविहा गं भंते ! देवलोगा पन्नत्ता) हे भदन्त ! देवलोक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? इसके उत्तर में प्रभु ने उनसे कहा-(गोयमा! चउन्विहा देवलोगा पण्णत्ता) हे गौतम ! देवलोक चार प्रकार के कहे गये हैं-भवनवासी વિષયની સંગ્રહ ગાથાને અર્થ આ પ્રમાણે થાય છે-“રાજગૃહ નગર કયે પદાર્થ છે? દિવસે પ્રકાશ અને રાત્રે અંધકાર કેમ હોય છે? સમય આદિ. રૂપ કાળનું જ્ઞાન ક્યા જીવોને હોય છે અને કયા ને હોતું નથી ? રાત્રિ અને દિવસ વિષયક શ્રી પાર્શ્વનાથ જિનેન્દ્રના પ્રશિષ્યના પ્રશ્ન ? દેવક સંબંધી પ્રશ્ન” આટલા વિષયોનું આ ઉદ્દેશકમાં નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે. " से भंते ! सेवं भंते ! ति" 3 महन्त ! मापनी बात सपथा सत्य छ, આપે આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું તે યથાર્થ જ છે.
ટકાથ–પૂર્વ પ્રકરણનું અંતિમ વાકય “દેવલોકમાં ઉત્પન્ન થયા છે એવું છે. તેથી દેવલોકના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરવાને માટે સૂત્રકારે નીચેના પ્રશ્નોત્તર माया छे:
गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छे. ( कइविहाण मते! देवलोगा पन्नत्ता १ ) 3 महन्त ! Rels डेटा १२॥ छ ?
उत्तर- गोयमा ! चबिहा देखलोगा पणता गौतम
श्रीभगवतीसत्र:४