Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे नैरयिकाः महावेदनाः-अल्पनिर्जराः । शैलेशी प्रतिपन्नकः अनगारः अल्पवेदनोमहानिर्जरः । अनुत्तरौपपातिका देवा अल्पवेदनाः अल्पनिर्जराः । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ “महावेदनश्च, वस्त्र, कर्दम-खञ्जनकृतं चाधिकरणी । तृण हस्तकश्च कवल्लं, करण-महावेदना जीवाः " ॥ मू० ३ ॥
टीका- 'जीवा गं भंते ! कि महावेयणा - महानिज्जरा ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! जीवाः खलु किम् महावेदनाः महानिर्जराश्च भवन्ति, महावेयणा अप्पनिजरा सेलेसि पडिचन्नए अणगारे अप्पवेयणे महानिज्जरे अणुत्तरोववाइया देवा अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा । सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) जो अनगार प्रतिमाप्रतिपन्न होता है, वह महावेदनावाला
और महानिर्जरावाला होता है, छट्ठी और सातवीं पृथिवी में जो नारक जीव होते हैं वे महावेदनावाले और अल्पनिर्जरावाले होते हैं । शैलेशी अवस्था प्राप्त जो अनगार होता है, वह अल्पवेदनावाला और महानिजरावाला होता है ! तथा अनुत्तरोपपातिक जो देव हाते हैं, वे अल्पवेदना और अल्पनिर्जरावाले होते हैं । हे भदन्त ! जैसा आपने यह कहा है वह ऐसा ही है-हे भदन्त ! वह ऐसा ही है। ऐसा कहकर वे गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये।
टीकार्थ-वेदना और निर्जरा का अधिकार चल रहा है इससे यहां पर सूत्रकार ने इन दोनों का साहचर्य प्रतिपादन किया है-गौतम ने प्रभु से इस विषय में ऐसा पूछा है कि-(जीवाणं भंते ! किं महावेयणा पुढवीसु नेरइया महावेयणा अप्पनिजरा, सेलेसि' पडिबन्नए अणगारे अप्पवेयणे महानिज्जरे, अणुत्तरोववाइया देवा अपवेयणा अप्पनिज्जरा ) प्रतिभा धारण ४२. ના અણુગાર મહાદનાવાળે અને મહાનિ જરાવાળો હોય છે, છઠ્ઠી અને સાતમી નરકના નારકો મહાદનાવાળા અને અલ્પનિર્જરાવાળા હોય છે. શેલેશી અવસ્થા પ્રાપ્ત કરનાર અણગાર અલ્પવેદનાવાળે અને મહાનિર્જરાવાળો હોય છે, અને અનુત્તર વિમાનવાસી દેવો અલ્પવેદનાવાળા અને અલ્પનિજેરાपाणाडाय छे. ( सेव भते ! सेव भते त्ति ) 3 महन्त ! मापे ४ा प्रमाणे છે. આપની વાત સત્ય અને યથાર્થ છે. આ પ્રમાણે કહીને વંદણું નમસ્કાર કરીને ગૌતમ સ્વામી તેમને સ્થાને બેસી ગયા.
ટીકાર્થ–વેદના અને નિર્જરાને અધિકાર ચાલી રહ્યો છે. તેથી સૂત્રકારે આ સૂત્રમાં તે બન્નેના સાહચર્યનું પ્રતિપાદન કર્યું છે. આ વિષયમાં ગૌતમ स्वामी महावीर प्रभुन सको प्रश्न पूछे छे । (जीवाणं भते ! कि महावेयणा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪