Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टी० ० ६ ० ३ महाकाल्पकर्म निरूपणम् ८०९
द्वितीयोद्देशके पुद्गलानामाहारतो निरूपणं कृतम् अथ बन्धादितस्तानिरूपयितुमादौ तृतीयोद्देशकार्थसंग्रहाय गाथाद्वयमाह- बहुकम्म' इत्यादि , 'भविए ' इत्यादि च
मूलम्-गाहा 'बहुकम्मै वत्थ पोग्गल पओगसा वीससा ये सादीए । कम्महिई त्थेि संजय सम्मदिही ये सन्नी य ॥ १ ॥ भविए दंसण-पजत्त-भासअ-परित्त,-नाण-जोगे य ।
उवओगा-ऽऽहारग -सुहम--चरिम-बंधे यं अप्पबहं ॥२॥ गाथा छाया-बहुकर्म, वस्त्र पुद्गलाः प्रयोगेण विस्रसया च सादिकः ।
कर्मस्थिति-स्त्री-संयत-सम्यग्दृष्टिश्च संज्ञी च ॥१॥ भविको दर्शन-पर्याप्त-भाषक-परीताज्ञान-योगाश्च ।
उपयोगा-ऽऽहारक-सूक्ष्म-चरमबन्धश्वाल्पबहुत्वम् ॥ २ ॥
टीका-'बहुकर्म' महाकर्मणो जीवस्य सर्वतः पुद्गला बध्यन्ते इत्यादिनिरूपणम् १, ' वत्थपोग्गलपओगसा वीससा य ' ' वस्त्रे पुद्गलाः प्रयो
'घहुकम्म' इत्यादि।
बहुकर्म १, वस्त्रपुद्गल प्रयोग से या स्वभाव से २, सादिक ३, कर्मस्थिति ४, स्त्री ५, संयत ६, सम्यक दृष्टि ७, संज्ञी, भव्य, दर्शन, पर्याप्त, भाषक, परित्ता, ज्ञान, योग, उपयोग, आहारक, सूक्ष्म, चरम बंध ८, अल्पबहुत्व ९,
टीकार्थ-द्वितीय उद्देशक में आहार की अपेक्षा से पुद्गलों का निरूपण किया जा चुका है अब उन्हों पुदलों का बंधादिककी अपेक्षा लेकर इस उद्देशक में निरूपण करने के लिये, सब से प्रथम सूत्रकार ने इस
"बहुकम्म " त्याहि
साथ-(१) महुम, (२) पापुद्रय प्रयोगथा है स्माथी, (3) साहि, (४) स्थिति, (५) खी, (6) संयत, (७) सभ्यष्टि , (८) सशी, सन्य, दृशन, ५यात, भाष४, परित्त, ज्ञान, योग, ५, मा२४, सूक्ष्म, य२भ, मध, (८) २६५ हुत्व.
ટકાર્થ–બીજા ઉદ્દેશકમાં આહારની અપેક્ષાએ પુલનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે. હવે એજ પુનું બંધાદિકની અપેક્ષાએ નિરૂપણ કરવાને માટે म १०२
श्री.भगवती सूत्र:४