Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका
र खु. १ घेदनानिर्जरास्वरूपनिरूपणम् ७५९ हन्त, गौतम ! यो महावेदनः एवमेव । षष्ठी-सप्तम्योः भदन्त ! पृथिव्योः नैरयिका महावेदनाः? हन्त, महावेदनाः, ते खलु भदन्त ! श्रमणेभ्यो निर्ग्रन्थेभ्यो महानिर्जरतराः ? गौतम ! नो अयमथः समर्थः । तत् के नार्थेन भदन्त ! एवम्
वेदना-निर्जरा-वस्त्र वक्तव्यता'से गूणं भंते !' इत्यादि ॥
सूत्रार्थ-(से गूणं भंते ! जे महावेयणे से महानिजरे, जे महानिजरे से महादेयणे, महावेयणस्स य अप्पवेयणस्स य से सेए जे पसत्थनिजराए ?) हे भदन्त ! जो महावेदना वाला होता है वह महानिर्जरा वाला होता है क्या? तथा जो महानिर्जरावाला होता है वह महावेदना वाला होता है क्या? तथा जो महावेदनावाला एवं अल्पवे. दना वाला है-उनमें क्या वह जीव उत्तम है जो प्रशस्त निर्जरा वाला होता है ? (हंता, गोयमा! जे महावेयणे एवं चेव ) हां गौतम ! जो महावेदना वाला होता है उसी प्रकार जानना चाहिये है। (छट्टि-सत्तमाप्सु णं भंते ! पुढवीसु नेरइया महावेयणा) हे भदन्त ! छठी और सातवी पृथिवी में नारक जीव क्या महावेदना वाले होते हैं ? (हंता, महावेयणा) हाँ गौतम ! छठी और सातवीं पृथिवी में नारक जीव महावेदन वाले होते हैं। (तेणं भंते ! समणेहितो निग्गंथेहितो महानिवरतरा) हे भदन्त ! छठी और सातवी पृथिवी में रहने वाले नारक
वहना-
निश-अवतव्यता" से गूणं भंते ! " त्यादि
सूत्राय -( से गुणं भंते ! जे महावेयणे से महानिज्जरे जे महानिज्जरे से महावेयणे, महावेयणस्स य अपवेणस्स य से सेए जे पसत्थनिज्जराए ?) महन्त ! જે જીવ મહાદનાવાળો હોય છે તે શું મહાનિર્જરાવાળો હોય છે? તથા જે જીવ મહાનિર્જરાવાળે હોય છે તે શું મહાવેદનાવાળો હોય છે ? તથા મહાવેદનાવાળા અને અલ્પવેદનાવાળા જીવોની અપેક્ષાએ શું એ જીવ ઉત્તમ છે
२ प्रशस्त निशाणी डाय छ? (हता गोयमा ! जे महावेयणे एवं चेव) 1, जीतम ! मेवुन मन छ. “२ मडावनावाणी डाय छ" त्यांथी ने समस्त प्रश्नोत ४थन मी अड ४२. (टी-सचमासु णं मंते ! पुढवीसुनेरइया महावेयणा १) 8 महन्त ! छटी भने सातमी न२४नाना। शुभावहनावारी डाय छ ? (हता महावेयणा ) , गौतम ! ७gी मने सातमी न२४ा ना२॥ भावनापाय छे. (वेणं भंते ! समणेहितो निग्गंथेहितो महानिज्जरतरा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪