Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टी श० ५ ० ८ सू० १ पुदलस्वरूपनिरूपणम् १११ देशाप्रदेशपुद्गलानां परिमाणज्ञापनायोक्तम् , तथा 'खेत्तादेसेण वि एवं चेव' क्षेत्रादेशेनापि एवमेव सर्ववदेव सर्व पुद्गलाः सपदेशा अपि, अप्रदेशा अपि सन्ति, अनन्ताश्च, 'काला देसेण वि, भावादेसेण वि एवं चेव' तथा कालादेशेनापि, भावादेशेनापि एवमेव-उपर्युक्तवदेव सर्वे पुद्गलाः सप्रदेशा अपि,अप्रदेशा अपि सन्ति, अनन्ताश्च अथ द्रव्यतः अपदेशस्य क्षेत्राधपेक्षया अप्रदेशादित्वं निरूपयितुमाह'जे दरओ अपएसे से खेत्तओ नियमा अपएसे' यः पुदगलो द्रव्यतोऽप्रदेशः, स क्षेत्रतो नियमेन अवश्यम् अपदेशः, किन्तु — कालओ सिय सपएसे, सिय अपएसे, ' कालतः स्यात्-कदाचित् सप्रदेशः,स्यात्-कदाचित् अप्रदेशः, तथा 'भावओ अनर्ध और अमध्यत्व का संग्रह हो जाता है । तथा (अनन्त ) ऐसा जो कहा गया है वह सप्रदेश अप्रदेश पुद्गलों के परिणाम को ज्ञापन के लिये कहा गया है । (खेतादेसेण वि एवं चेव ) क्षेत्र की अपेक्षा से भी समस्त पुल समदेश भी हैं और अप्रदेश भी हैं क्यों कि वे सब अनन्त हैं । ( कालादेसे ग वि भावादेसेण वि एवं चेव ) काल की अपेक्षा एवं भाव को अपेक्षा भी समस्त पुगल सप्रदेश भी हैं और अप्रदेश भी हैं । क्यों कि वे अनन्त हैं।
अब सूत्रकार (जे वो अपएसे से खेत्तओ नियमा अपएसे) इस सूत्र द्वारा यह प्रकट कर रहे हैं कि जो पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा अप्रदेश होता है, वह क्षेत्र की अपेक्षा अवश्य ही अप्रदेश होता है किन्तु ( कालो सिय सपएसे सिय अपएसे ) काल की अपेक्षा वह कदाचित् प्रदेशसहित भी होता है और कदाचित् प्रदेशरहित भी होता भने मध्यावन! सड (समावेश) 25 छ. तथा “ अनन्त " मनात શબ્દનો પ્રયોગ સપ્રદેશ અને અપ્રદેશ પુલનું પરિમાણ જાણવા માટે કરાયે छ. ( खेत्तादेसेण वि एवं चेव) क्षेत्रनी अपेक्षा ५ समस्त पुर। प्रदेश युत ५५ छ भने प्रदेश २(डत ५५ छ, १२५५ 3 ते मी मनात छे. (कालादेसेण वि भावादेसेण वि एवं चेव) नी मपेक्षा ५५ समस्त पुस સપ્રદેશ પણ છે અને અપ્રદેશ પણ છે, કારણ કે તેઓ અનંત છે.
वे सूत्र॥२ (जे दवओ अपएसे से खेत्तओ नियमा अपएसे ) ॥ सूत्र દ્વારા એ વાત પ્રકટ કરે છે કે જે પુદ્ગલ દ્રવ્યની અપેક્ષાએ પ્રદેશ રહિત હોય છે, તે મુદ્દલ ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ પણ અવશ્ય પ્રદેશ રહિત હોય છે, પરંત (कालो सिय सपएसे सिय अपएसे ) अनी अपेक्षा ते यारे प्रशित
श्री. भगवती सूत्र:४