Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका २० ५ ०८ ० ३ जीवादिवृद्धिहान्यादिनिरूपणम् ६७७ निरुपचय-निरपचया भवन्ति । अन्ते गौतमो भगवदुक्तं यथार्थत्वेन स्वीकरोति -' सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सत्यमेवेत्यर्थः ॥३॥ इतिश्री-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य श्री घासीलाल अतिविरचितायां भगवती सूत्रस्य प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां पञ्चमशतकस्य अष्टमोद्देशक समाप्तः।५-८॥ भंग में बने रहते हैं। इस तरह प्रभु द्वारा यथार्थरूप में प्रतिपादित हुए विषय को सुनकर अब अन्त में गौतम भगवान उसे सर्वथा सत्यरूप से स्वीकार करते हुए कहते हैं कि (सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ) हे भदन्त ! आप देवानुप्रिय ने जो कहा है वह सर्वथा सत्य ही है-सर्वथा सत्य ही है । सूत्र ३॥ श्री जैनाचार्य जैनधर्म दिवाकर श्री घासीलालजी महाराजकृत "भगव. तीसूत्र" की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्या का पांचवे शतक का आठवां
उद्देशक समाप्त ॥ ५-८॥
આ રીતે મહાવીર પ્રભુ દ્વારા યથાર્થરૂપે પ્રતિપાદિત કરાયેલા વિષયને सजीन गोतम स्वामी तमा यातानी या ४२॥ छे-सेज भते । सेव भते ! ति" महन्त ! सा५ हेवानुप्रिये २ ७धु त सथा सत्य । છે. હે ભદન્ત ! આપે આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું, તે યથાર્થ જ છે. સૂ. ૩
જૈનાચાર્ય શ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત “ભગવતીસૂત્રની પ્રમેયયન્દ્રિકા
વ્યાખ્યાને પાંચમાં શતકને આઠમે ઉદ્દેશક સમાપ્ત છે ૫-૮ છે
श्री. भगवती सूत्र:४