Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टी०स०५ १०९३० ३ नरयिकादीनां समयादिवाननिरूपणम् ७०१ इह तेषां प्रमणाम् , इह तेषाम् एवं प्रज्ञायते, तद्यथा-समया इति वा, यावत्उत्सर्पिणी इति वा, तत् तेनार्थेन यावत्-नो एवं प्रज्ञायते, तद्यथा-समय इति वा, यावत्-उत्सर्पिणी इति वा । एवं यावत्-पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाम् । अस्ति खलु भदन्त ! मनुष्याणाम् इहगतानाम् एवं प्रज्ञायते, तद्यथा-समया इति वा, यावत्-उत्सर्पिणी इति वा ? हन्त, अस्ति, तत् केनार्थेन ? गौतम । इह तेषां मानम् , उत्सप्पिणीकाल को नहीं जानते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (इह तेसि माणं, इह तेसिं पमाणं,इह तेसिं एवं पनायए तं जहा समयाइ वा, जाव उस्सप्पिणीह वा,से तेणष्टेणं जाव नो एवं पन्नायए-तं जहा-समयाइ वा जाव उस्सर्पिणीइ वा-एवं जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं) उन समयादिक का मान इस मनुष्यलोक में होता है, उनका प्रमाण भी इसी मनुष्यलोक में होता है। यहीं पर वे इस प्रकार से जाने जाते हैं कि यह समय है, यावत् यह उत्सर्पिणीकाल है इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि नारक जीव इस प्रकार से नहीं जानते हैं कि यह समय है यावत् यह उत्सर्पिणी है। इसी तरह से यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंचा के विषय में श्री जानना चाहिये। ( अस्थि णं भंते ! मणुस्साणं इह गयार्ण एवं पनायए तं जहा-समयाइवा, जाव उस्सप्पिणीइ वा ) हे भदन्त ! जो मनुष्य इस मनुष्यलोक में रहते हैं वे क्या यह जानते हैं कि यह समय से यावत् यह उत्सर्पिणीकाल है ? (हंता अस्थि) हां गौतम ! वे ऐसा
तेसिं एवं पन्नायए-तजहा-समयाइ वा, जाव उस्सप्पिणीइ वा, से तेणटूठेण जाव नो एवं पन्नायए-तजहा-समयाइ वा जाव उस्स प्पिणीइ वा-एवं जाव पचिदिय तिरिक्खजोणियाण) ते समयानुं मा५ २॥ मनुष्य सोमाय छे. તેનું પ્રમાણ પણ આ મનુષ્ય લેકમાં જ હોય છે. અહીં (આ મનુષ્યલેકમાં) તેને આ પ્રમાણે જાણવામાં આવે છે–
२ " समय छे, म आति छे, (यात्) L सहित કાળ છે. ” હે ગૌતમ! તે કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે નારક જીવ આ પ્રમાણે
रात नथी , " 241 समय छे, (यात) मा सपि छ." ५'2. ન્દ્રિય તિય"ચ પર્વતના જીના વિષયમાં પણ આ પ્રમાણે જ સમજવું. ( अत्थिणं भंते ! मणुस्साण इह गयाण एवं पन्नायए-तजहा-समयाइ वा, आव उत्सप्पिणीइ वा १) 3 महन्त ! ॥ मनुष्य मा २i मनुष्याने शुअनं જ્ઞાન હોય છે? શું તેઓ સમયથી લઈને ઉત્સપિર્ણ કાળ પર્યન્તના કાળને
छ १ (हंता अत्यि), गौतम! तेमात छे. (से केणढेण'१)
श्री. भगवती सूत्र:४