Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्र
यावत् - आवलिका इति वा, इयं आवलिका, इत्येवं रूपेण अवसर्पिणी इति वा इयम् अवसर्पिणी इत्येवं रूपेण, उत्सर्पिणी इति चा, इयम् उत्सर्पिणी इत्येव रूपेण मनुष्यलोकस्थितैर्मनुष्यैर्विज्ञायते किम् ? भगवानाह - 'हंता, अत्थि' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् , अस्ति संभवति यत् -- मनुष्यलोकस्थितैः मनुष्यैः समयादिकं विज्ञायते ! गौतमः पृच्छति-' से केणटेणं ? ' हे भदन्त ! वत् केनार्थेन कथं तावत् मनुष्यैः समयादिकं विज्ञायते ? भगवानाह- गोयमा ! इहं तेसिं माण, इहं तेसिं पमाणं, एवं पनायए' हे गौतम ! इह मनुष्यक्षेत्रे तेषां समयादीनां मानं परिमाणम् वर्तते, एवम् इह मनुष्यलोके तेषां समयादीनां प्रमाण प्रकृष्टमानं मूक्ष्ममानमित्यर्थः विद्यते अत एवम् वक्ष्यमाणरीत्या प्रज्ञायते विज्ञायते मनुष्यैः यत्-' त जहा-समया इवा, जाव-उस्सप्पिणी इ वा, तद्यथा-समया मनुष्य क्या यह समय पदार्थ है, यह आवलिका है, यह अवसर्पिणीकाल है, यह उत्सर्पिणीकाल है इस रूपसे इस समयादिकों को जानते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम! (हंता अत्थि) हां, वे इस बात को जानते हैं कि ये समयादिक पदार्थ हैं । गौतम स्वामी पुनः प्रभु से प्रश्न करते हैं-(से केणटेणं ) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि मनुष्य समयादिकों को जानते हैं ? तब इसके उत्तर में प्रभु उन्हें कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम (इह तेसिं माणं, इह तेसिं पमाणं, एवं पन्नायए) इस मनुष्यलोक में उन समयादिकों का मान प्रमाण है, इस मनुष्यलोक में उन समयादिकों का प्रमाण-सूक्ष्ममान है इस कारण मनुष्य इस रूप से जानते हैं कि-(तं जहा) जैसे (समयाइ वा) यह समय है, (जाव उस्सप्पिणी समय छ, " " जाव उस्सप्पिणीइ वा १” ( यावत् ) " Salqel in छ " એટલે કે મનુષ્યલકમાં રહેલાં મનુષ્ય શું સમય, આવલિકા, અવસર્પિણી કાળ આદિ કાળદ્રવ્યને જાણી શકવાને શું સમર્થ હોય છે?
उत्तर- “हता अस्थि " , गौतम ! तेसो समया६ि ५५°२. angी શકવાને શક્તિમાન હોય છે.
गौतम स्वामी तनुं १२१५ लाशवान भाटे पूछे छे , “से केणठेणं" 3 ભદન્ત ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે મનુષ્ય સમયાદિકને જાણી શકે છે?
उत्त२-" गोयमा ! " गौतम ! ( इह तेसिं माण, इह तेसिं पमाणं, एवं पत्रायए) ॥ मनुष्यभो त समयानुं भान (प्रभार) डाय छ, આ મનુષ્યલોકમાં તે સમયાદિકેનું પ્રમાણ (સૂમમાન ) હોય છે. તે કારણે भनुध्या l श छे , “समवाइ वा” मा समय छ, “जाव उस्म्रपि.
श्री. भगवती सत्र :४