Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्रिका टीका २०५ ३०९ सू०४ पापस्यीय महावीरयोर्व कव्यता ७२३
भागे विशालः ब्रह्मलोकप्रदेशस्य पञ्च रज्जुविस्तारत्वात् स लोकः पृथुलोऽस्ति । तमेव दृष्टान्तद्वारा प्रतिपादयति- ' अहे पलियंकसंठिए ' अधः पल्यङ्कसंस्थितः अधः - अधोभागे पर्यङ्काकारः विस्तृतत्वात् 'मज्झे वरवरविग्गहिए' मध्ये वरवच वद विग्रहः शरीरम् - आकारो यस्स स तथा वरवज्रविग्रहिकः मध्यकुशत्वेन उत्तमवजाकार इत्यर्थः ' उद्धमुगागारसंठिए' उपरि ऊर्ध्वमृदङ्गाकारसंस्थितः, ऊर्ध्वः न तु तिरचीनो यो मृदङ्गो वाद्यविशेषो मर्दलः, तस्याकारेण संस्थितो यः स शराब संपुटाकार इत्यर्थः स लोकः, इति पूर्वेणान्वयः ' तंसि च णं सासयंसि लोगंसि अणादियंसि, अणवदग्गंसि, परितंसि, परिवुडेंसि' तस्मिंश्च खलु शाश्वते अनादिके एक राजू का विस्तार वाला है इस कारण मध्य में यह संक्षिप्त है संकीर्ण है । ऊपर में यह विशाल इसलिये है कि ब्रह्मलोक का विस्तार पांच राजू का है। इसी बात को सूत्रकार दृष्टान्त द्वारा समझाते हैं ( अहे पलियंकसंठिए ) विस्तृत होने के कारण इसका आकार नीचे के भाग में पलंग के जैसा हो गया है (मज्झे बरवहरविग्गहिए ) मध्य में कृश होने के कारण इसका आकार मध्यभाग में उत्तम वज्र जैसा हो गया है (उपि उद्धमुगागारसंठिए ) ऊपर में इसका आकार सूधे मुंह रखे हुए मृदंग के जैसा हो गया है । तिरछे मुँह रखे गये मृदंग के जैसा नहीं । तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार दो शरावों के नीचे के भाग को आपस में मिला देने पर आकार बन जाता है उसी प्रकार से इस लोक का आकार है । क्यों कि शरावसपुट का इस स्थिति में आकार नीचे के भाग में विस्तृत, मध्यभाग में संकिर्ण और ऊपर के भाग में विस्तीर्ण होता है। (संसिच णं सासयंसि लोगंसि अणादियंसि अणव
તેના વિસ્તાર એક રાજૂ પ્રમાણુ હાવાથી વચ્ચેથી તે સંકીણું છે, તેના ઉપરના ભાગ વિશાળ છે કારણ કે બ્રહ્મàાકને વિસ્તાર પાંચ રાજૂના છે. એજ वातने सूत्रार दृष्टांतथी समन्नवे छे - ( अहे पलियं का ठिए ) विस्तृत डोवाने सीधे नीथेथी तेने। आार पौंगना नेवा छे, ( मज्झे वरवइर विगाहिए ) मध्यमां સંકીણુ (સાંકડા ) હાવાથી તેના મધ્ય ભાગના આકાર ઉત્તમ વજાના જેવે छे, ( उपि उद्धमुइंगागारसंठिए ) तेना उपरना लागनो आअर उर्ध्वा भुजे રહેલા ઢાલના જેવા છે, તિરછા મેઢ પડેલા ઢોલ જેવા તે આકાર નથી.
કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે એ શકારાના નીચેના ભાગેાને એક ખીજા સાથે જોડી દેવાથી જેવા આકાર બને છે, એવા જ આ લાકના આકાર છે. આ પ્રમાણે જે શરાવસ’પુટ ( એ શકેારાંના સમૂહ ) અને છે તેના નીચેના ભાગ વિસ્તૃત, મધ્યના ભાગ સકીણુ અને ઉપરના ભાગ વિસ્તૃત હોય છે,
श्री भगवती सूत्र : ४