Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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সময়ন্ধিা o o '৭ ০৩ ২ ঘন্নাগুন্তাবিজবনিকাল ধর ___ छाया-परमाणुपुद्गलः खलु भदन्त ! असिधारां वा क्षुरधारां वा, अवगाहेत ? हन्त,अवगाहेत, तत् खलु भदन्त ! तत्र छियेत वा, भिधेत वा ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नो खलु तत्र शस्त्र क्रामति । एवं यावत्-असंख्येयप्रदेशिकः । अनन्त प्रदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः, असिधारां वा, क्षुरधारां वा अवगाहेत ? हन्त,
परमाणु पुद्गल आदि के विषय में असिधारा आदि वक्तव्यता__ 'परमाणु पोग्गले णं भंते !' इत्यादि ।
सूत्रार्थ-(परमाणुपोग्गले णं भंते ! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा ) हे भदन्त ! परमाणु पुद्गल तलवार की धार के ऊपर अथवा उस्तरा की धार के ऊपर ठहर सकता है क्या ? (हंता ओगाहेज्जा) हां, गौतम ! परमाणु पुद्गल तलवार की धार के जार अथवा उस्तरा की धार के ऊपर ठहर सकता है। (से णं तत्थ छिज्जेज्जा वा भिज्जेज्जा वा ) हे भदन्त ! वहां पर स्थित हुआ वह पुद्गल परमाणु क्या छिद जाता है, भिद जाता है ? (गोयमा ) हे गौतम ! ( णो इणढे सम?) यह अर्थ समर्थ नहीं है। (णो खलु तत्थ सत्थं कमइ, एवं जाव असंखेज्जपएसिओ) क्यों कि उस परमाणुपुद्गल पर शस्त्र का वश नहीं चलता है, इसी प्रकार से यावत् असंख्यात प्रदेशों वाले स्कन्धों के विषय में भी जानना चाहिये। ( अणंतपएसिए णं भंते ! खंधे असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा) हे भदन्त ! अनन्तप्रदेशोंवाला जो स्कन्ध होता है वह क्या तलवार को धार के ऊपर अथवा उस्तरे की
પરમાણુ પુદ્ગલ વગેરેના વિષયમાં અસિધારા આદિની વક્તવ્યતા– " परमाणु पोग्गले गं भंते !" त्याह
सूत्राथ-" परमाणु पागले णं भंते ! असिधार वा खुरधार वा ओगाहेजा ?" 3 महन्त ! ५२मा युद्धव तसवारनी घार 3५२ अथवा साना धार ७५२ २ही शॐ ४३ ? “ हता, ओगाहेन्जा" है गौतम ! ५२मा
र तपारनी घा२ ७५२ अथवा मखानी धार ७५२ २ही श छ. “से गं तस्य हिज्जेज्जा वा भिज्जेज्जा वा १" महन्त ! शुते ५२मा पुरयतेना द्वारा छहाय छ मई, सहाय छ मई ? ( गोयमो ! ) गौतम ! (णो इणटूठे समठे) से मनी शतुं नथी, (णो खलु तत्थ सत्य कमइ, एवं जाव असंखेज्ज पएसिओ) २५ ते ५२म।। ५२ शस्त्रनी मस२5 ती नथी, मस-यात પર્યન્તને પ્રદેશવાળા સ્કન્ધોને વિષયમાં પણ આ પ્રમાણે જ સમજવું. ( अणंतपएसिए ण भंते ! खधे असिधार वा खुरधार वा ओगाहेज्जा ?) ભદન્ત ! અનંત પ્રદેશેવાળે જે ઔધ હોય છે તે શું તલવારની ધાર ઉપર
श्री. भगवती सूत्र:४