Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे न्धास्ते यथा त्रिप्रदेशिकः स्कन्धः तथा भाणितव्याः कथयितव्याः। गौतमः पुनः पृच्छति-'संखेज्जपएसिएणं भंते ! खंधे किं सअड़े, पुच्छा ?' हे भदन्त ! संख्येयप्रदेशिकः खलु स्कन्धः किम् सार्धः, समध्यः, सपदेशः ? उताहो अनर्धः, अमध्यः अप्रदेशो वर्तते ? इति गौतमस्य प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा ! सिय सअड्ढे, अमज्झे, सपएसे, ' हे गौतम ! संख्येयप्रदेशिकः-स्कन्धः स्यात् कदाचित् साधः, अमध्यः, ते जहा तिप्पएसिओ तहा भाणियव्वा ) जो विषम प्रदेशवाले स्कन्ध हैं उनमें सार्धाभाव आदि का कथन जैसा तीन प्रदेश वाले स्कन्ध में किया गया है वैसा ही जानना चाहिये । विषम प्रदेशोंवाले स्कन्ध पंच प्रदेशिक, सप्त प्रदेशिक, एवं नव प्रदेशिक स्कन्ध हैं। गौतम प्रभु से पुनः प्रश्न करते हैं-(संखेजपएसिएणं भंते ! खंधे किं स अड़े, पुच्छा) हे भदन्न ! जो संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध होता है वह क्या सार्ध, समध्य एवं प्रदेशसहित होता है ? अथवा अनर्ध, अमध्य एवं प्रदेशरहित होता है ? इस गौतम के प्रश्न का समाधान करने के निमित्त प्रभु उन से कहते हैं कि-( गोयमा ) हे गौतम ! (सिय स अड्डे, अमज्झे, सपएसे ) संख्यान प्रदेशिक पुद्गल स्कन्ध कदाचित् सार्ध हाता है, अमध्य होता है और प्रदेशमाहित होता है और ( सिय अणड़े, समझे, सप एसे ) कदाचित् अनर्ध होता है, मध्य सहित होता है और प्रदेशसहित होता है। तात्पर्य यह है कि जो संख्यात प्रदेशवाला स्कन्ध समप्रदेश प्रशाणा पुरस २४न्धी ४ छ. “जे विसमा ते जहा तिप्पएसिओ तहा भाणियव्वा " तथा विषम प्रशवाय २४न्धाना साधता ( A सहित डावु તે) આદિનું પ્રતિપાદન ત્રિપદેશિક પુલ સ્કોની સાર્ધતા આદિના ઉપર્યુક્ત કથન મુજબ સમજવું. પાંચ, સાત અને નવ પ્રદેશોવાળા સ્કન્ધને વિષમ પ્રદેશોવાળા સ્કન્ધ કહે છે.
गौतम स्वाभीनी प्रश्न-" संखेज्जपए सिएण' भते ! खंधे किं सअड्ढे पुच्छा" महन्त ! सात प्रदेशोगा। २४५ शुसाध ( अ सहित) સમધ્ય અને સંપ્રદેશ હોય છે અથવા અનર્ધ, અમધ્ય અને પ્રદેશ રહિત હોય છે?
महावीर प्रभु पास- गोयमा !" उ गौतम ! सिय सअडढे. अमझे, सपए से '' सध्यात प्रशि: २४५ ४या२४ ससडित, मध्यरहित भने प्रदेश सहित डाय छे. अने " सिय अणड्ढे समझे, सपएसे'' च्यारे અધરહિત, મધ્યસહિત અને પ્રદેશ સહિત હોય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે જે સંખ્યાત પ્રદેશિક સ્કન્ય સમપ્રદેશવાળ હોય છે, તે અર્ધસહિત, મધ્ય
श्री. भगवती सूत्र:४