Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टी० श०५ उ० ८ सू० १ पुद्गलस्वरूपनिरूपणम् ५९५ अवादीत्-द्रव्यादेशेनापि मे आर्य ! सर्वे पुद्गलाः सपदेशा अपि, अप्रदेशा अपि,अनन्ताः, क्षेत्रादेशेनापि एवमेव, कालादेशेनापि, भावादेशेनापि एवमेव । यो द्रव्य. तोऽप्रदेशः, स क्षेत्रतो नियमेनाप्रदेशः, कालतः स्यात् सप्रदेशः स्यात् अप्रदेशःभावतः स्यात् सप्रदेशः, स्यात् अप्रदेशः ! यः क्षेत्रतः अप्रदेशः, स द्रव्यतः स्यात् सप्रदेशः, धारणकर जानना चाहता हूँ ! (तएणं से नियंठिपुत्ते अणगारे नारयपुत्तं अणगारं एवं वयासी ) इसके बाद निर्ग्रन्थी पुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से ऐस कहा-(दव्वादेसेण वि मे अजो ! सब्वे पोग्गला सपएसा वि अपएसा वि ) हे आर्य ! मेरी मान्यता के अनुसार अर्थात् मेरी समझके अनुसार-द्रव्य की अपेक्षा से भी समस्त पुद्गल प्रदेश सहित भी होते हैं और प्रदेशरहित भी होते हैं। क्यों कि ( अणंता ) द्रव्य अनन्त होते हैं ( खेत्तादेसेण वि एवं चेव-कालादेसेण वि, भावादेसेण वि एवं चेव) क्षेत्र की अपेक्षा से भी ऐसा ही है. कालकी अपेक्षा और भाव की अपेक्षा से भी ऐसा ही है । (जे दव्यओ अपएसे से खेतआ नियमा अपएसे ) जो द्रव्य को अपेक्षा प्रदेशरहित होता है, वह नियम से क्षेत्र की अपेक्षा प्रदेशरहित होता है । (कालओ सिय सपएसे सिय अपएसे ) और काल की अपेक्षा वह प्रदेश सहित होता भी है, और नहीं भी होता है इस तरह काल की अपेक्षा वहां प्रदेश युक्तता की भजना जाननी चाहिये । इसी तरह से (भावओ) भाव की अपेक्षा से भी (सिय सपएसे सिय अपएसे) प्रदेश युक्तता की वहां पर भजना एवं पयासी) त्यारे निथीपुत्र सारे ना पुत्र मारने मा प्रमाणे
पु-दव्वादेसण वि मे अज्जो ! सव्वे पोग्गला सपएसा वि अपएसा वि) આર્ય ! અમારી માન્યતા મુજબ (મારી સમજણ પ્રમાણે) દ્રવ્યની અપેક્ષાએ સમસ્ત પુલ પ્રદેશ સહિત પણ હોય છે અને પ્રદેશ રહિત પણ હોય છે. ४२ है ( अणत्ता) द्रव्य माय छे. ( खेत्तादेसेण वि, एव चेव-काला देसेण वि, भावादे सेण वि एवं चेव ) क्षेत्रनी पेक्षा ५६५ सjo छ, मनी अपेक्षा भने भावनी अपेक्षा ५४४ मे १ छ. ( जे व्यओ अपएसे से खेत्तओ नियमा अपएसे ) २ पुरद दयनी अपेक्षा प्रदेश २डित डाय छ, ते नियमथी। क्षेत्रनी अपेक्षा ५५] प्रदेश २डित डाय छ, ( कालओ सिय सपएसे, सिय अपएसे ) मन मनी भपेक्षा ते प्रदेश सडित होय पास છે અને નથી પણ હોતું. આ રીતે કાળની અપેક્ષાએ પ્રદેશ યુકતતાને વિક स्वी४२ च्या छ. मेरा प्रमाणे (भावओ) मानी अपेक्षा ५५५ (सिय सपएसे सिय अपएसे) प्रदेश युतताने वि स्व.२ ४२वामा माव्यो छ.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪