Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
४
भगवतीसूत्रे उताहो अनर्धः, अमध्यः, अप्रदेशः ? गौतम ! साधः, अमध्यः, सप्रदेशः, नो अनर्धः, नो समध्यः, नो अप्रदेशः ! त्रिमदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः पृच्छा ? गौतम ! अनर्धः, समध्यः, सप्रदेशः, नो साधः, अमध्यः, नो अप्रदेशः । यथा गया है । ( दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे किं स अड्डे, समझे, सपएसे, उदाहु अणडे अमज्झे अपएसे ) हे भदन्त ! जो पुद्गल स्कन्ध से प्रदेशों वाला होता है वह क्या साध, समध्य और सप्रदेश होता है ? अथवा अर्धभाग रहित मध्यभाग रहित और प्रदेश रहित होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! ( सअड्डे, अमज्झे, सपएसे, णो अणडे, णो समझे णो अपएसे ) जो द्विप्रदेशो स्कन्ध होता है, वह अपने अर्धभाग से युक्त होता है। प्रदेशों से युक्त होता है । परन्तु मध्यभाग से युक्त नहीं होता है । इसलिये वह अर्ध सहित मध्यभाग रहित और प्रदेशों वाला कहा गया है । (तिपएसिएणं भंते ! खंधे पुच्छा) हे भदन्त ! जो त्रिप्रदेशी स्कन्ध होता है-उसके विषय में भी मेरी इसी तरह की पृच्छा है ? (गोयमा ) हे गौतम ! ( अणड्डे समज्झे, सपएसे, णो सअड़े णो अमज्झे, णो अपएसे) जो त्रिप्रदेशी पुद्गल स्कन्ध होता है, वह अर्थभाग रहित होता है, मध्यभाग सहित होता है और प्रदेशों से युक्त होता है। इस कारण उसे अर्धभाग से रहित, मध्यभाग से युक्त और
छ. (दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे कि सअड्ढे, सपएसे, उदाहु अणड्ढे, अमझे, अपएसे ) 3 महन्त ! मे प्रशोवाणे पुस २४५ शुसा (अधસહિત) સમધ્ય અને પ્રદેશ હોય છે ? અથવા તે અર્ધભાગથી રહિત, મધ્ય माथी २डित भने प्रदेशोथी २हित हाय छ ? " गोयमा ?" गौतम ! (सअड्ढे, अमज्झे, सपएसे, णो अणड्ढे, णो समझे णो अपएसे ) ये प्रहશોવાળે સ્કન્ધ અર્ધભાગથી યુક્ત હોય છે, પ્રદેશોથી યુક્ત હોય છે, પણ મધ્યભાગથી રહિત હોય છે તેથી તે અર્ધભાગ સહિત, મધ્યભાગ રહિત અને પ્રદેશોવાળ કહે છે.
(तिपएसिएण भते ! खंधे पुच्छा) महन्त ! त्रय प्रशोवामान्य विधे ५५ हु मे पात Men भा छु. “ गोयमा !” हे गौतम ! (अणड्ढे, समझे, सपएसे, णो सअड्ढे, णो समझे, णो अपएसे ) त्रिशी પુલ સ્કન્ધ અર્ધભાગથી રહિત, મધ્યભાગથી યુક્ત અને પ્રદેશોથી યુક્ત હોય છે. તે કારણે તેને અર્ધભાગથી રહિત. મધ્યભાગ સહિત અને પ્રદેશો સહિત
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪