Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे जाव-पवहिं किरियाहिं पुढे ' येषामपि च खलु बनस्पत्यादिजीवानाम् काष्ठादि. शरीरैः धनुः निर्वर्तितं निष्पन्न तेऽपि च खलु धनुर्निर्वतने हेतुभूता वनस्पत्यादिजीवाः कायिक्या यावत्-प्राणातिपातक्रियया पश्चभिः स्पृष्टाः - तादृशक्रियाजनितकर्मणा सम्बद्धा भवन्ति, धनुषः कायिक्या दियावत्प्राणातिपातक्रियाहेतुतया तन्निवर्तनहेतुभूतजीवानामपि पापकर्मवन्धो भवतीत्याशयः, ' एवं धणुं पुढे पंचहि फिरियाहि — एवं तथैव धनुः पृष्ठ धनुर्दण्डगुणादिसमूहः तस्य पृष्ठ पृष्ठभागः पञ्चभिः क्रियाभिः, तथा ' जीवा पंचहि, हारू पंचहि, उस पंचहिं, सरे, पत्तणे, फले, हारू पंचहिं ' जीवा प्रत्यञ्चा पञ्चभिः स्नायुः पञ्चभिः, इषुः शरपत्रफल स्नायुसमुदायः पञ्चभिः । प्रत्येकभवमाश्रित्याह – शरः वाणः पञ्चभिः, पत्त्रणम् जिन वनस्पतिकायिक आदि जीवों के काष्ठादि शरीरों द्वारा धनुष निपन्न हुआ है ऐसे वे धनुष के निष्पन्न होने में कारणभूत वनस्पत्यादिक जीव कायिकी क्रिया से लेकर प्राणातिपातिकी आदि ५ क्रियाओंसे स्पृष्ट हैं इन क्रियाओं से जन्य कर्मों द्वारा बद्ध हैं तात्पर्य कहने का यह है कि धनुष कायिकी आदि से लगाकर प्राणातिपात तक की ५ क्रियाओं का जय हेतु माना गया है इस धनुष के निष्पन्न होने-बनाने में कारण भूत जो जीव हुए हैं वे भी पापकर्म के बंधक होते ही हैं। ( एवं धणुपुढे पंचहिं किरियाहिं ) दण्ड गुणादिक का समूहरूप जो धनुष है, सो इसका जो पृष्ठभाग है वह धनु पृष्ठ भी पंच क्रियाओं से तथा (जीवापंचहि, हारूपंचहिं उसू पंचहिं, सरे, पत्तणे, फले हारु, पंचहिं जीवा ) धनुष की जो डोरी है, वह भी पांच क्रियाओं से युक्त है, કાષ્ઠાદિ શરીર દ્વારા ધનુષ બનેલું હોય છે, તે વનસ્પતિકાયિક આદિ જ કાયિકિથી લઈને પ્રાણાતિપાતિકી પર્યન્તની પાંચ ક્રિયાઓથી પૃષ્ટ બને છેએટલે કે એ ક્રિયાઓ દ્વારા જે પાપને બંધ કરાય છે, તે પાપને બાંધનાર બંધક તેઓ પણ બને છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે ધનુર્ધારી તે કાયિકી આદિ પાંચે કિયાજન્ય પાપને બંધ કરનાર બને જ છે. એટલું જ નહીં પણ તે ધનુષ્યના નિર્માણમાં જે જે જીવો કારણભૂત બનેલા હોય તે જ પણ એ पांच ठियारन्य भवन ४२ना२ मन छ “ एव धणुपुटठे पंचहि किरियाहि" ' गुणाहिना समू३५२ धनुष छ, तना पृष्ठ मागत धनुः १४ ४ छ. ते धनुःपृष्ठ ५] पांय लियामाथी स्पृष्ट थाय छ, तथा “जीवा पंचहि हारू पंचहि, उसू पचहि, सरे, पत्तगे, फले, हारू पचहि " धनुषनी ટરી (પ્રત્યંચા) પાંચે ક્રિયાઓથી યુક્ત હોય છે, બાણ પણ પાંચે ક્રિયાઓથી યુક્ત હોય છે. બાણને મૂળ ભાગ (પત્રણ) પણ પાંચ કિયાઓથી યુક્ત હોય
श्री. भगवती सूत्र:४