Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टी० श० ५ उ० ६ सू. २ धनुर्विषये निरूपणम् ४०५ जाव-उबिहइ ' हे गौतम! यावच्च खलु स धनुर्धारी पुरुषः धनुः परामशति उपादत्ते धनुः परामृश्य धनुरुपादाय यावत्-इषुम् परामशति, इषु परामृश्य स्थाने तिष्ठति, स्थाने स्थित्वा, आयतकर्णायतं करोति, आयतकर्णायतं कृत्वा ऊर्व विहायसि इषुम् उद्विध्यति प्रक्षिपति । 'तावं च णं से पुरिसे काइयाए जावपाणाइवायकिरियाए पंचहि किरियाहिं पुढे' तावच्च खलु स पुरुषः कायिक्याकायसम्बन्धिन्या यावत्-आधिकरणिक्या, पाद्वेषिक्या, पारितापनिक्या प्राणातिपातक्रियया, एताभिः क्रियाभिः स्पृष्टः पञ्चक्रियाजनितकर्मणा बद्धो भवति, "जेसि पि यणं जीवाणं सरीरेहिं धणु निव्वत्तिए, ते वि य णं जीवा काइयाए, जब वह धनुर्धारी मनुष्य धनुषको उठाता है, (धणु परामुसित्ता जाव उन्विहइ ) और धगुष को उठाकर बाण को उठाता है, बाण को उठा कर फिर वह धनुष से बाण चलाने योग्य आसन से बैठ जाता है और बैठकर ( आयतकर्णायतं करोति ) धनुष पर बाण चढाने के निमित्त उसे अपने कानतक खींचता है और खींचकर जब उस पर घाण को छोड़ने के निमित्त चढा लेता है, तथा चढाकर उसे ऊँचे आकाश में प्रक्षिप्त कर देता है (तावं च णं से पुरिसे काइयाए जावपाणाइवायकिरियाए पहिं किरियाहिं पुढे) तबतक वह पुरूष कायसंबंधी कायिकी क्रिया से लेकर आधिकरणिकी, प्रादेषिकी, परितापनिकी एवं प्राणाति पतिकी इन पांच प्रकार की क्रियाओं से स्पृष्ट हुआ माना गया हैं। अर्थात् इन पांच क्रियाओं से जन्य कर्मों का बंध करने वाला वह है ऐसा सिद्धान्त में कहा गया है । ( जेसि पि य णं जीवाणं सरीरे हिं धणु नि. व्यत्तिए, ते वि य जीवा काइयाए जाय पंचहिं किरियाहिं पुट्टे) तथापरामुसइ" न्यारे ते धनुर्धारी धनुष्यने जावे , मने मायने ५५ ४ीने न्यारे ધનુષધારી ધનુષમાંથી બાણ છેડવા માટે આસને બેસી જાય છે, અને એ રીતે मेसीने “ आयतकर्णायतं करोति" धनुष ५२ मा २७१। भाट धनुष्य पोताना કાન સુધી ખેંચે છે અને તેના પર બાણ ચડાવીને બાણને આકાશમાં ઊંચે ३१ छ “ताव च ण से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहि किरियाहिं पुढे" त्यां सुधीमा ते ५३५ ४ायिsी, माधि४२णुिी, पाषिzी, पारिતાપનિકી અને પ્રાણાતિપાતિકી, એ પાંચ પ્રકારની કિયાએથી સ્પષ્ટ થયેલે ગણાય છે. એટલે કે તે પાંચ પ્રકારની ક્રિયાઓ જન્ય કર્મોને બંધ કરનાર તે બને છે, એવું સિદ્ધાંતમાં કહેલું છે.
"जेसि पि य ण जीवाण' सरीरेहि धणु निव्वत्तिए, ते वि य ण जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे " तथा वनस्पतिशायि माहिवानां
श्री. भगवती सूत्र:४