Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
भगवतीसूत्रे महाशिवः, अग्निशिखः, दशरथः, वसुदेवश्चेति । ‘एएसि पडिसतू जहा समवाएनाम परिवाडी तहा णेयव्वा, ' एतेषां नवानां वासुदेवानां नव प्रतिशत्रवः, तेषां नामानि अश्वग्रीव-तारकः, मेरकः, मधुकैटभः, निशुंभा, बलिः, प्रभराजः, रावणः, जरासन्ध इति। एतत्सर्व यथा श्री समयायामूत्रे नामपरिपाटी प्रतिपादिता तथाऽ. त्रापि ज्ञातव्यम् , तच्च सर्वम् उपयुक्तरीत्या प्रतिपादितमेव । अन्ते गौतमः प्राह'सेव भंते ! सेवं भंते ! ति जाव-विहरइ' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति, हे भदन्त ! भवदुक्तं सर्व सत्यमेव इति प्रतिपादयन् गौतमो यावत्-विहरति
१प्रजापति,२ब्रह्मा,३सोम, ४रुद्र, ५शिव ६महाशिव, अग्निशिख, दशरथ, ९वसुदेव, । 'एएसि पडिसत्तू जहा समवाए नाम परिवाडीए तहा णेयव्वा' इन नौ वासुदेवोंके नौ प्रतिवासुदेवोंकी नामावली इस प्रकार से है- १ अश्वग्रीव, २ तारक, ३ मेरक, ४ मधुकैटभ, ५ निशुंभ, ६ बलि, ७ प्रभराज, ८ रावण, ९ जरासंध, । यह सब श्री समवायांगसूत्र में नाम परिपाटी प्रतिपादित हुई है, सो जैसी वहां यह प्रतिपादित की गई है, उसी प्रकार से यहां पर भी जाननी चाहिये । यही बात ' जहा समवाए नाम परिवाडीए तहा नेयव्वा' इस सूत्रपाठ द्वारा समझाई गई है। अब अन्त में गौतम प्रभु के कथन की अनुमोदना करते हुए कहते हैं कि ' सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ ' हे भदन्त ! आपके द्वारा प्रतिपादित हुआ यह सब विषय सत्य ही है-हे भदन्त !
पासुयोना पितानi नाम नीचे प्रमाणे छ-(१) प्रलपति, (२) ब्रह्मा, (3) सेम, (४) ३२, (५) शिव, (९) महाशिव, (७) मशिशिम, (८) ६शरथ भने (6) वसुदेव.
(एए सिं पडीसत्तू जहा समवाए नाम परिवाडीए तहा णेयव्वा)
આ નવ વાસુદેવોના શત્રુરૂપ પ્રતિવાસુદેવોનાં નામ આ પ્રમાણે છે – (१) अश्वश्रीव, (२) ता२४, (3) भे२४, (४) मधुटन, (५) निशुम (6) मति, (७) प्रल२४, (८) रा१सने (6) रास. २मा नाभानी परिपाटी सभ. વાયાંગ સૂત્રમાં જે પ્રમાણે આપવામાં આવેલી છે, એ જ પ્રમાણે અહીં આપपामा मावेश छे. (जहा समवाए नाम परिवाडीए तहा नेयवा) ॥ सूत्र દ્વારા એ જ વાત સમજાવવામાં આવી છે.
(सेव भंते ! सेव भंते ! त्ति जाव विहरइ ) महावीर प्रभुना क्यनामा અસીમ શ્રદ્ધા પ્રકટ કરતાં ગૌતમ સ્વામી કહે છે-“હે ભદન્ત ! આ વિષયનું
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪