Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५७०६०२ गृहपतिभाण्डाग्निकायस्वरूपनिरूपणम् ३८५ गवेषणात्मकव्यापारव्यापृतत्वेन ता आरम्भिक्यादिक्रियाः महत्यः आसन् तदुपलब्धिकालेतु तादृशव्यापारस्योपरतस्वात् ताः क्रियाः लघुभूताः भवन्तीत्याशयः । गौतमः पुनः पृच्छति-गाहावइस्सणं भंते ! भंड विकिणमाणस्स कइए भंडे साइज्जेजा ! 'हे भदन्त ! गाथापतेः खलु भाण्ड विक्रीणानस्य विक्रीणतः क्रयिकः क्रयणकर्ता ग्राहकः भाण्ड स्वादयेत् विश्वासार्थम् किश्चिन्मूल्यादि दानेन सत्यापयेत् 'साई' इतिभाषाप्रसिद्धं दद्यात् , अथ च 'भंडेय से अणुवणीएसिया' कि-जय गाथापति अपने चुराये गये भाण्डों की खोज करने में तल्लीन रहता है-उस समय उस की गवेषणात्मक व्यापार में लगे हुए होने के कारण आरंभिकी आदि क्रियाएँ बहुत अधिक मात्रा में होती रहती हैं। और जब गये हुए वे भाण्ड उसको मिल जाते हैं, तब वह उनके गवेषण रूप व्यापार से उपरत हो जाता है ऐसी स्थिति में उसकी वे आरंभिकी आदि क्रियाएँ विपुल मात्रा में नहीं रहती हैं । किन्तु साधारण लघुमात्रा में-थोड़ीमात्रा में बन जाती हैं। इसीलिये यहां पर (ताओ सव्वाओ पयणुई भवंति ) ऐसा कहा है । अब गौतम प्रभु से पुनः पूछते हैं कि-(गाहावइस्स णं भंते ! भंडे ! विकिणमाणस्स कहए भंडे साइज्जेज्जा ) हे भदन्त ) उस गाथापति के भाण्डों को खरीदने वाला जो दूसरा व्यक्ति है उसने उन वर्तनों को खरीदने के निमित्त उस गाथापति को अभी पूरा मूल्य तो दिया नहीं है-सिर्फ साई में ही कुछ रूपया दिये हैं, तो ऐसी स्थिति में जब कि (भंडे य से अणुवणीए
જ્યારે તે વાસણોને વ્યાપારી પિતાનાં ખોવાયેલાં વાસણેની શોધ કરવામાં લીન થઈ જાય છે, ત્યારે તપાસ કરવાની પ્રવૃત્તિમાં મગ્ન હોવાને કારણે આરંભિકી આદિ ક્રિયાઓ અધિક પ્રમાણમાં થતી રહે છે. પણ જ્યારે ચારાયેલાં વાસણે તેને પાછાં મળી જાય છે, ત્યારે તે તેમની શેધ કરવાની પ્રવૃત્તિમાંથી નિવૃત્ત થઈ જાય છે. એવી પરિસ્થિતિમાં તેની આરંભિકી આદિ પાંચે કિયાએ અધિક માત્રામાં રહેતી નથી, પણ અ૫ માત્રાવાળી બની જાય छ. a ॥२६ मही मे ४थु छ “ ताओ सव्वाओ पयणुई भवति" ते अधी ક્રિયાઓ અપ બની જાય છે.
वे गौतम स्वामी महावीर प्रभुने भान प्रश्न पूछे छ-" गाहावइस्स णं भते ! भडे विकिणमाणस्स कइए भडे साइज्जेज्जा" 8 महन्त ! તે વાસણના વ્યાપારીને કેઈ એક ગ્રાહકે વાસણો ખરીદવા માટે मार्नु भाषेलु डाय-तनी पूरेपूरी भित युवा न. डाय, “भडेय से अणुवीएण
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श्री. भगवती सूत्र:४