Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टका श०५ उ० ४ सू० ९ प्रमाणस्वरूपनिरूपणम् स्मरणद्वारा ' गवयो गवयपदवाच्यः' इति या उपमितिर्जन्यते सैत्र वा उपमान मित्याशयः, ३ आगच्छति गणधरपारम्पर्येण इत्यागमः शब्दप्रमाणम् ४ ॥
एषां स्वरूपभेदमाह - प्रत्यक्षं द्विविधम् - इन्द्रिय- नोइन्द्रियभेदात् । इन्द्रिय प्रत्यक्ष पश्चविधम् - श्रोत्रचक्षुर्घाणरसनस्पर्शनभेदात् । नोइन्द्रियप्रत्यक्ष त्रिविधम् -अवधि - मनः पर्यव - केवलज्ञानभेदात् १ | अनुमानं त्रिविधम्- पूर्ववत् शेषवत् दृष्ट
स्मरणद्वारा " गवयो गवय पदवाच्यः " ऐसी जो उसे उपमिति हुई है उसका जनक उपमान है ।
गणधरों की परम्परा से जो चला आरहा हो वह आगम है । इस का दूसरा नाम शब्द प्रमाण भी है ।
अब सूत्रकार इनके स्वरूप को कहते हैं प्रत्यक्ष दो प्रकार का हैइन्द्रिय प्रत्यक्ष १ और दूसरा नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष इनमें इन्द्रिय प्रत्यक्ष पांच प्रकार का है - श्रोत्रेन्द्रियप्रत्यक्ष, चक्षुइन्द्रियप्रत्यक्ष, घाणइन्द्रियप्रत्यक्ष, रसनेन्द्रियप्रत्यक्ष और स्पर्शनइन्द्रियप्रत्यक्ष । श्रोत्र इन्द्रिय से जो शब्द का ज्ञान होता है वह श्रोत्रेन्द्रियप्रत्यक्ष है इसी तरह चक्षुइन्द्रिय आदि प्रत्यक्षों को भी जानना चाहिये । नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष ३ प्रकार है - अवधिज्ञान, मनः पर्ययज्ञान और केवलज्ञान। यहां नो इन्द्रिय का तात्पर्य किसी भी इन्द्रिय की सहायता के बिना होने वाले प्रत्यक्ष से है । इन तीन प्रत्यक्षों के होने में किसी भी इन्द्रिय की सहायता सापेक्ष नहीं होती है। येतो केवल आत्मामात्र की सहायता से ही उत्पन्न होता है ।
ગણધરાની પરપરાથી જે પ્રમાણુ ચાલ્યું આવે છે તેને આગમ કહે છે. તેનું બીજુ નામ શખ્સ પ્રમાણ પણ છે.
હવે સૂત્રકાર આગમના સ્વરૂપને સમજાવે છે–પ્રત્યક્ષના એ પ્રકાર છે, (1) इन्द्रिय प्रत्यक्ष (२) नोहन्द्रिय अत्यक्ष इन्द्रिय अत्यक्षना यांग प्रार नीचे प्रमाणे छे-(१) श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष, (२) यक्षु इन्द्रिय प्रत्यक्ष, (3) प्रालेन्द्रिय प्रत्यक्ष, (४) रसनेन्द्रिय प्रत्यक्ष, मने (4) स्पर्शेन्द्रिय प्रत्यक्ष.
શ્રોત્રેન્દ્રિયથી ( કાન વડે ) જે શબ્દનું જ્ઞાન થાય છે તેને શ્રોત્રેન્દ્રિય પ્રત્યક્ષ કહે છે. એજ પ્રમાણે ચક્ષુ ઇન્દ્રિય વગેરે પ્રત્યક્ષોના વિષયમાં પણ સમજવું. નાઇન્દ્રિય પ્રત્યક્ષના ત્રણ પ્રકાર છે (૧) અવિધ જ્ઞાન, મન પ ય જ્ઞાન અને (૩) કેવળ જ્ઞાન. કાઈ પણ ઇન્દ્રિયની મદદ પ્રત્યક્ષ કહે છે. ઉપરનાં ત્રણે પ્રત્યક્ષા ઇન્દ્રિયાની નથી. તે તેા માત્ર આત્માની સહાયતાથી જ ઉત્પન્ન થાય છે.
વિના થતા જ્ઞાનને નેઇન્દ્રિય સહાયતાની અપેક્ષા રાખતા
श्री भगवती सूत्र : ४