Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५३०४सू०१२ अनुत्तरदेवविषययेप्रश्नोत्तरनिहपणम् ३०७ रोति, तद् अनुत्तरोपपातिकाः देवाः तत्र गताश्चैव सन्तो जानन्ति, पश्यन्ति ! हन्त, जानन्ति, पश्यन्ति, तत् केनार्थेन यावत्-पश्यन्ति ! गौतम ! तेषां देवानाम् अनन्ताः मनोद्रव्यवर्गणा लब्धाः प्राप्ताः, अभिसमन्वागता भवन्ति, तत् तेनार्थन यद् इहगतः केवली यावत्-पश्यन्ति ॥ मू-१२ ॥ अर्थ को, जिस प्रश्न को जिस कारण को और जिस व्याकरण विशेष स्पष्टी करण को पूछते हैं यहां रहे हुए केवली उस अथे का यावत् उस व्याकरण का अर्थात्-विशेष पूछे हुवे का उत्तर देते हैं । इस कारण हे गौतम ! मैंने पूर्वोक्त रूप से कहा है । (जं णं भंते ! इहगए चेव केवली अटुं वा जाव वागरेइ, तं णं अणुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा जाणंति, पासंति ? ) हे भदन्त ! यहां पर रहे हुए ही केवल ज्ञानी जिस अर्थ का यावत् उत्तर देते हैं, उस उत्तर को अनुत्तर विमानवासी देव अपने स्थान पर रहे हुए ही क्या जान लेते हैं ? देख लेते हैं ? (हंता, जाणंति, पासंति ) हां गौतम! वे जान लेते हैं और देख लेते हैं । ( से केणटेणं जाव पासंति ) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि वे अपने स्थान पर हो रह कर यावत् देख लेते हैं ? (गोयमा ! तेसिं णं देवाणं अणंताओ मणोदबवग्गणाओ लद्धाओ पत्ताओ, अभिसमन्नागयाओ भवंति से तेणटेणं जं णं इहगए केवली जाव पासंतित्ति ) हे गौतम ! उन देवों के लिये अनन्त मनोरन्यवर्गणाए હતુ, જે પ્રશ્ન, જે કારણ અને જે વ્યાકરણ ( વિશેષ સ્પષ્ટીકરણ ) વિષે પ્રશ્ન કરે છે, તે અર્થ, હેતુ, પ્રશ્ન, કારણ અને વ્યાકરણને અહીં રહેલા કેવલી ભગવાન ઉત્તર આપે છે. તે કારણે હે ગૌતમ ! મેં ઉપરોક્ત કથન કર્યું છે. (जण भंते ! इगए चेव केवली अद्र वा जाव वागरेइ, त ण अणुत्तरोववाइया देवा तत्थ गया चेव समाणा जोणति पासंति १ ) महन्त ! અહીં રહેલા કેવળી જે અર્થને, જે હેતુને, જે પ્રશ્નને, જે કારણને અને જે વ્યાકરણને ઉત્તર આપે છે, તે ઉત્તર શું અનુત્તર વિમાન पासी वो तमना विमानमा रही थी भी श छ ? ( हंता, जाणंति पासंति ) , गौतम ! तेसो त onejी ले छ मने भी a छे. ( से केणठेणं जाव पासंति ) 3 महन्त ! भा५ । अरणे मे डा छ। तमे। तमन स्थाने २डीन ते उत्तरोने की भी छ१ (गोयभा! तेसिं ण देवाण अणताओ मणोदव्ववग्गणाओ लद्धाओ पत्ताओ, अभिसमन्नागयाओ भवंति-से तेणटेण जण इह गए केवली जाव पासंति) ३ गौतम ते ॥
श्री.भगवती सूत्र:४