Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
सम्मदिट्ठी वनगा ' तत्र तेषां मध्ये खलु ये ते अमाथिसम्म गृदृष्टयुपपन्नकाः ' तेणं जाणंति, पासंति ' ते खलु अमाविसम्यग्दृष्टयुपपन्नका वैमानिकाः जानन्ति पश्यन्ति, केवलिनः प्रकृष्टमनो वचनं च । गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति से केण एवं बुच्चर - अमाई सम्मदिट्ठी जाव- पासंति ?' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन एवम् उच्यते - यत् अमाथिसम्यग्दृष्टयः यावत् पश्यन्तीति ? यावत्पदेन ' जानन्ती ' —त्यस्य संग्रहः । भगवान् तत्र हेतुं पतिपादयति - ' गोयमा ! अमाई सम्मदिट्ठी दुविधा पण्णत्ता' हे गौतम! अमाथिसम्यग्दृष्टयो वैमानिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः'अनंतराव वनगा य, परंपरोव वनगा या अनन्तरोपपन्नकाथ, परम्परोपपन्नकाश्च
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हैं नहीं देखते हैं। और तत्थ णं जे ते अमाई सम्मदिट्ठी उववन्नगा ' जो अमायी सम्यग्दृष्टिरूप से उत्पन्न वैमानिक देव हैं वे केवल ज्ञानी के प्रकृष्ट मन और वचन को जानते और देखते हैं । इस विषय में कारण को जानने की इच्छा से गौतम पूछते हैं कि ' से केणडेणं एवं gar - अमाई सम्मदिट्ठी जाव पासंति ' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि जो अमायी सम्यग्दृष्टि वैमानिक देव हैं वे यावत् देखते हैं । यहां यावत्पद से " जानंति " इस पद का संग्रह हुआ है। उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं ' गोयमा' हे गौतम! ' अमाई सम्मदिट्ठी दुविहा पण्णत्ता' जो अमायी सम्यग्दृष्टि वैमानिक देव हैंवे भी दो प्रकार के कहे गये हैं- 'अनंतशेववन्नग्गा य, परंपरोववन्नगा य एक अनन्तरोपपन्नक और दूसरे परम्परोपपन्नक, इनमें जो अनन्तरोप
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अमाई सम्मदिट्ठी उत्रवन्नगा इत्यादि) पशु सभायी सभ्य दृष्टि३ये उत्पन्न થયેલા. વૈમાનિક દેવેશ કેવળજ્ઞાનીના પ્રકૃષ્ટ મન અને વચનને જાણે છે અને દેખે છે.
હવે
તેનું કારણ જાણવાને માટે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને આ પ્રશ્ન पूछे छे - ( से केणद्वेण एवं बुच्चइ - अमाई सम्मदिट्ठी जाव पासति ? ) डे लहन्त ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે અમાયી સમ્યક્ દૃષ્ટિ વૈમાનિક દેવા જ દેવળજ્ઞાનીના પ્રકૃષ્ટ મન અને વચનને જાણી શકે છે અને દેખી શકે છે ?
तेना उत्तर व्यापता महावीर प्रभु उडे छे - " गोयमा !” हे गौतम! ( अमाई सम्मदिडी दुवि पण्णत्ता ) सभायी सभ्यग्दृष्टि वैमानि देवाना शु मे लेह पडे छे - " अनंतदेववन्नगा य, परंपरोववन्नगो य " ( 1 ) अनन्तशपयन्न અને (૨) પરમ્પરાપપત્રક. તેમાના અનન્તરાપપન્નક સભ્યષ્ટિ વૈમાનિક દેવે
श्री भगवती सूत्र : ४