Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
वैमानिकाः देवाः जानन्ति ! पश्यन्ति, गौतम ! अरत्येक केः जानन्ति, पश्यन्ति, अरत्येक के न जानन्ति न पश्यन्ति तत् के नार्थेन यावत् न पश्यन्ति ? गौतम ! वैमानिकाः देवाः द्विविधाः शशाः, तद्यथा- मायिमिध्यादृष्टयुपपणकाश्च, अमायिस भ्यग्र दृष्टयुपपनका तत्र ये ते मायिमिध्यादृष्टयुपपत्रकार ते न जानन्ति, न पश्यन्ति,
1:
हैं क्या ? (हंता धारेज्जा ) हां, गौतम ! केवलज्ञानी प्रकृष्ट मन अथवा वचन को धारण करते हैं । ( जहा णं भंते । केवली पणीयं मणं वा व या धारेजा, तं णं बेमाणिया देवा जाणंति, पासंति ?) हे भदन्त ! केव लज्ञानी जिस प्रकृष्ट मन अथवा वचन को धारण करते हैं, उसे वैमानिक देव जानते हैं और देखते हैं क्या ? (गोयमा ! अत्येगइया जाणंति पासंति, अत्थेगइया ण जाणंति, ण पासंति) हे गौतम कितनेक वैमा निक देव जानते हैं और देखते हैं। तथा कितनेक वैमानिक देव नहीं जानते हैं और नहीं देखते हैं। (से केणट्टेणं जाव न पासंति) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि कितनेक वैमानिक देव जानते हैं और देखते हैं तथा किननेक वैमानिक देव नहीं जानते हैं और नहीं देखते हैं ? ( गोयमा ! वेमाणिया दृविहा पण्णत्ता ) हे गौतम! वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गये हैं ( तं जहा ) जैसे - ( माहमिच्छा दिडी उबवनगा य अमाईसम्मदिट्टी उववनगा य तत्थ णं जे ते माइमिच्छादिडी उबवन्नगा ते न जाणंति) एक तो वे जो मायिमिध्यादृष्टियों
डा, गौतम ! ठेवणज्ञानी अदृष्ट भन भने वथनने धारण रे छे. ( जहा ' भंते! केवली पणीय मणं वा वइ वा धारेज्जा, तं णं वैमाणिया देवा जाणंति, पासंति ? ) हे अहन्त ! वणज्ञानी ने प्रदृष्ट भन अथवा वयनने धारण करे छे, तेने शु वैभानि देवेो भये हेगे छे ? ( गोयम ! अत्थेगइया जाणति, पासंति, अत्थेगइया ण जाणति, ण पासंति ) हे गौतम डेंटला वैमानि देवा તે જાણે છે અને દેખે છે, તથા કેટલાક વૈમાનિક દેવે તે જાણતા નથી અને हेमता नथी. ( से देणट्टेण जाव न पासति १) हे अहन्त ! आप शा आरो એવુ' કહી છે કે કેટલાક વૈમાનિક દેવા તે જાણે-દેખે છે અને કેટલાક તે लशुता-हेमता नथी ? ( गोयमा ! ) हे गौतम ! ( वैमाणिया दुबिहा पण्णत्तातंजा - मोइमिच्छाविट्ठी उववन्नगा य अमाई सम्मदिट्ठी उववन्नागा य ) वैमानि દેવાના આ પ્રમાણે એ પ્રકારે છે (૧) માયિમિથ્યાદૃષ્ટિ રૂપે ઉત્પન્ન થયેલા शाने (२) अमाथि सभ्य दृष्टि ३ये उत्पन्न थयेसा वैमानि हेवा. ( तत्थण' जे ते माइमिच्छादिट्ठी उबवन्नगा ते न जाणंति न पासंति ) ते भन्नेमांना भाषि
श्री भगवती सूत्र : ४