Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे भवायुष्कं प्रतिसंवेदयति, एवं खलु एको जीव एकेन समयेन एकम् आयुष्कं पतिसंवेदयति तद्यथा इहभवायुष्कं वा, परभवायुष्कं वा ।। सू० १॥
टीका-पूर्वोक्तस्य लवणसमुद्रादेः केवलज्ञानिप्रतिपादितत्वेन सत्यत्वं संभवति, मिथ्याज्ञानिप्रतिपादितस्य तु मिथ्यात्वमपि स्यात् इति प्रतिपादयन् तृतीयोद्देशकं प्रारभते-' अन्नउत्थियाणं भंते ! इत्यादि । हे भदन्त ! अन्ययूथिकाः= अन्यतीथिकाः खलु ' एवमाइक्खति' एवम्-वक्ष्यमाणप्रकारेण आख्यान्ति कथसमएणं एगं आउयं पडिस वेदेइ ) इस तरह एक जीव एक समय में एक आयुकौ को भोगा करता है (तं जहा इहभवियाउयं वा परभवियाउयं वा) या तो वह इस भवसंबंधी आयु को भोगता है या परभव संबंधी आयु को भोगता है, दोनों का एक साथ एक समय में नहीं भोग सकता है।
टीकार्थ-लवणसमुद्र आदि के विषयमें किया गया कथन केवल ज्ञान शालीप्रभु द्वारा प्रतिपादित होनेके कारण सर्वथा सत्य है-परन्तु मिथ्याज्ञानी द्वारा जो भी कथन किया जाता है वह उनके छद्मस्थ होने के कारण असत्य होता है उसी बात को दिखलाने के लिये सूत्रकार ने इस तृती. योद्देशक का प्रारंभ किया है, इसमें सर्वप्रथम गौतम प्रभु से पूछ रहे हैं कि 'अन्न उत्थिया णं भंते एघमाइक्खंति ' हे भदन्त ! मिथ्या दृष्टि अन्यतीर्थिकजनोंने जो ऐसा अर्थात् वक्ष्यमाणरूप से कहा है ' एवं एग आउय पडिसंवेदेइ) मा शत मे १४ समये ये४ मायु भर्नु वहन ४२ छ, ( तजहा इहभत्रियाउय' वा परभवियाउय) iतो ते सामना આયુનું વેદન કરે છે, કાંતે પરભવના આયુનું વેદન કરે છે- અને એકસાથે એક સમયે ભેગવી શકતો નથી.
ટીકાઈ–લવણસમુદ્ર આદિના વિષયમાં જે પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે તે કેવળજ્ઞાનથી યુક્ત પ્રભુદ્વારા કરાયેલ હોવાથી સર્વથા સત્ય અને પ્રમાણ ભૂત છે પરંતુ મિથ્યાજ્ઞાની દ્વારા જે પ્રતિપાદન કરવામાં આવે છે તે તેમની છદ્મસ્થતાને કારણે અસત્ય પણ હોઈ શકે છે. એ વાત સૂત્રકારે આ સૂત્ર દ્વારા अट ४री .
गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छे - " ( अन्नउत्थियाण भते ! एवमाइक्खंति) 3 महन्त ! मिथ्याष्टि, मन्यताय । (न्य भतपहीया) मे ४ छ, ( एवं भासंति ) मे भाषण ३२ छ-विशेष३५ ४ छ, ( एवं
श्री. भगवती सूत्र:४