Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ०४ सू० ८ केवलीछवास्थनिरूपणम् २७३
टीका-केवलिनः प्रस्तावात् तद्विषये छद्मस्थ विषये च किश्चिद् विशेष वक्तव्यतामाह- केवली गं भंते !' इत्यादि । 'केवली गं भंते ! अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ, पासइ ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! केवली केवलज्ञानी खलु अन्तकरं सर्वदुःखान्तकरं वा, अन्तिमशरीरिकं चरमशरीरधारिणं वा सोच्या) सुन करके छद्मस्थ मनुष्य अन्त करको एवं अन्तिम शरीरवाले को जानता और देखता है इसका अभिप्राय ऐसा है कि केवली भगवान के समीप, केवली के श्रावक के समीप, केवली की श्राविका के समीप, केवली के उपासक ( श्रावक ) के समीप, केवली की उपासिका के समीप, केवली के पक्ष वाले के समीप, केवली के पक्षके श्रावक के समीप केवली के पक्ष की श्राविका के समीप, केवली के पक्षके उपासक के समीप, केवली के पक्षकी उपासिका के समीप अन्तकर एवं अन्तिम शरीर वाले का वर्णन सुन करके उन्हें जानता है (से तं सोच्चा) इस प्रकार से यह सुन करके जानता है का अभिप्राय है।
टीकार्थ- केवली का प्रकरण होने से केवली के विषय में और छमस्थमनुष्य के विषय में इस सूत्र द्वारा सूत्रकार कुछ विशेषवक्तव्यता प्रकट कर रहे हैं- इसमें गौतम प्रभुसे पूछते हैं कि 'केवलीणं भंते ! अंतकरंचा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ ?' हे भदन्त ! केवली भगवान् वा, से त सोच्चा ) समगीन छ५२५ मनुष्य मतरने मेने मतिभशरी२. વાળાને જાણ–દેખી શકે છે, એ કથનનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે-કેવલી ભગનની સમીપે, કેવલી ભગવાનના શ્રાવકની સમીપે, કેવલી ભગવાનની શ્રાવિકાની સમીપે, કેવલીના ઉપાસકની સમીપ, કેવલીની ઉપાસિકાની સમીપ, કેવલીના પક્ષવાળાની સમીપ, કેવળીને પક્ષના શ્રાવકની સમીપ, કેવળીના પક્ષની શ્રાવિ કાની સમીપ, કેવલીના પક્ષના ઉપાસકની સમીપ, અથવા કેવલીના પક્ષની ઉપાસિકાની સમીપ, અંતકર અને અંતિમ શરીરવાળાનું વર્ણન સાંભળીને તે तेन onell-हेभी शो छ-( से त सोच्चो ) " सामजान on-हेमे छे" तुं આ પ્રમાણે તાત્પર્ય છે––
ટીકાર્થ-આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકાર છ9 મનુષ્ય કરતાં કેવલી ભગવાનમાં જે વિશિષ્ટતા રહેલી છે તેનું પ્રતિપાદન કરે છે
गौतम स्वामी भापी२ प्रभुने मेवे प्रश्न पूछे छे है ( केवलीणं भंते ! अंतकर वा, अतिमसरीरिय वा जाणइ पासइ ?) 3 महन्त ! ही लगवान
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪