Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्र गौतम ! हसेद् वा, उत्सुकायेत वा । यथा खलु भदन्त ! छमस्थो मनुष्यो इसेत् , उत्सुकायेत, तथा केवली अपि हसेद् वा उत्सुकायेत वा ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, तत् केनार्थेन भदन्त ! यावत्-नो तथा केवली हसेद् वा, उत्सुकायेत वा, गौतम ! यत् खलु जीवाः चारित्रमोहनीयस्य कर्मण उदयेन हसन्ति वा, उत्सुकायन्ते वा, तत् केवलिनो नास्ति, तत् तेनार्थेन यावत्-नो तथा केवली छन्नस्थ मनुष्य हँसता है क्या ? और वह किसी भी वस्तु को लेने के लिये उत्कंठावाला भी होता है क्या ? (हंता गोयमा ! हसेज्ज वा उस्लुयाएज्ज वा) हां गौतम ! छद्नस्थ मनुष्य हँसता भी है और किसी इच्छित वस्तु को लेने के लिये उत्कंठा वाला भी होता है । (जहा णं भंते ! छउमत्थे मणुस्से हसेज्ज, उस्सुयाएज्ज, तहा णं केवली वि हसेज्ज वा उस्सुयाएज्ज वा) हे भदन्त ! जिस प्रकार से छद्मस्थ मनुज्य हँसता है और इच्छित पदार्थ को लेने के लिये उत्कंठित होता हैउसी तरह से केवली भगवान् क्या हँसते हैं और उत्सुक होते हैं? (गोयमा ! णो इणढे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । ( से केणढे णं भंते ! जाव णो णं तहा केवली हसेज्ज वा उस्सुयाएज्ज वा) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि केवली छद्मस्थ की तरह न हंसते हैं और न उत्सुक ही होते हैं ? (गोयमा ! जं णं जीवा चरितमोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं हंसंति वा उस्तुयायति वा) हे गौतम ! जीवचारित्रमोहनीयकर्म के उदय से हंसते हैं और उत्सुकताછદ્મસ્થ મનુષ્ય હસે છે ખરા ? અને કેઈપણ વસ્તુ લેવાને માટે તે ઉત્કંઠ ४२ छे मरे। १ (इंता गोयमा ! इसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा) डा गौतम ! ७५५५ મનુષ્ય હસે છે પણ ખરો અને કઈ ઈચ્છત વસ્તુ મેળવવાને માટે ઉત્કંઠા ५५ रे छे. ( जहाण भंते ! छ उमत्थे मणुस्से हसेज्ज उस्सुयाएजज, तहाणं केवली वि इसेज्ज वा उत्सुयाएज्ज वा) महन्त ! २वी रीते ७५२५ मनुष्य से छे અને ઈચ્છિત વસ્તુની પ્રાપ્તિ માટે ઉત્સુક હોય છે, એવી રીતે શુ કેવલી भगवान ५५ से छ भने उत्सुता सेवे छ ? (गोयमा ! णो इण समहे) हे गौतम ! मे मनतुं नथी. (से केणठेणं भंते ! जाव णोणं तहा केवली हसेज्ज वा उत्सुयाएज्जवा १) नत ! ५ ॥ ॥२॥णे । છે કે છવાસ્થ મનુષ્યની જેમ કેવલી ભગવાન હસતા નથી અને કોઈ વસ્તુ भाट सुस्ता ५५रामता नथी ? (गोयमा ! जंणं जीवा चरित्तमोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं हसति वा उम्सुयायंति वा) गौतम! वो आरित्रमाऊनीय भना त्यथी से छे भने उत्सुतावाणा य छ. ( से णं केवलिस्स
श्री. भगवती सूत्र:४